एक बार ….
बस एक बार माँ ,
मुझे भी इस धरा पर आने दो |
मेरी अपनी जिंदगी ,
इस जहां में जीने दो |
क्या कसूर है मेरी ,
जो मुझे मारना चाहती |
मैं भी तुम्हारे जैसा ,
एक दिन हो जाउंगी |
अभी तो मैं कलियाँ हूँ ,
कलियाँ को फूल जाने दो|
मैं अपने दिलों में ,
उम्मीद लगाये बैठी हूँ |
तेरी इस सुनी गोद में ,
कब आकर मैं बैठूंगी |
कहाँ गए वो आँचल तेरा ,
जो ममता से भरी होती हैं |
उस आंचल में मुझे ,
बस एक बार छुप जाने दो |
बस एक बाऱ माँ ,
मुझे इस धरा पर आने दो
निवेदिता चतुर्वेदी
सुंदर कविता निवेदिता जी।
बढ़िया कविता !
dhanybad