स्त्री
एक प्रश्न स्त्री क्या है ?
एक मनोरंजन की वस्तु ,
भोग की ,उपभोग की वस्तु,
पुरुषों हवस मिटने की चीज ,
एक चुपचाप जुर्म सहने वाला जीव ,
बच्चा पैदा करने की मशीन ,
मर्दों के हाथ की कठपुतली ,
माँ ,बहन ,पत्नी ,प्रेयसी क्या है वह ,
स्त्री जब खुद से सवाल करती है आखिर क्या है वह।
इन सब चीजों में
उसके सामने एक यक्ष प्रश्न होता है
आखिर क्या है वह?
— अरुण निषाद ,सुलतानपुर
स्त्री क्या है आपने प्रशन किया है
स्त्री माँ है जो नौ महीने कोख में रख नए जीवन को जन्म देती है ,
स्त्री पत्नी है जो हर सुख दुःख में पति का साथ देती है,
स्त्री बहन है जो अपने भाई के लिए मंगल कामना करती है।,
स्त्री बेटी है जिसके लिए पिता ही उसकी ज़िन्दगी का पहला और आखरी पुरुष रहता है जिसको वो अपना आदर्श मानती है
पर पुरुष इन सब रूपों के इलावा उसे भोग की वस्तु समझता है , कठपुतली समझता है , बच्चा पैदा करने की मशीन समझता है।
धिक्कार है ऐसे पुरुषत्व पर।
अंदर-अंदर टूटन
अंतर में घुटन
और मुख पर मुस्कान,
खुशियाँ लुटाना
आदत-सी बन गई है! इसी आशा में,
इसी प्रत्याशा में कि शायद
वो एक दिन आएगा ज़रूर आएगा, जो नारी को
उसके अस्तित्व की पहचान कराएगा,
आदर दिलाएगा उसके अंतर की पीड़ा से
समाज तिलमिलाएगा !
और तथाकथित समाज के
योग्य और सहृदय जन
एक दिन महसूस करेंगे
उसकी छटपटाहट को,
देंगे नारी को उसकी पहचान,
देंगे उसे सम्मान
और जीने का अधिकार,
क्योंकि नारी
टूटकर भी
सदैव रही है संपूर्ण !
पक्का भरोसा है उसे कि एक दिन आएगा,
ज़रूर आएगा
जब खोया हुआ अतीत
होगा उजागर !
इंतज़ार है उसे
उस दिन का
जो उसे न्याय दिलाएगा
देखते हैं, कब आएगा
वह भाग्यशाली एक दिन !
_____________________प्रीति दक्ष
यदि बोल कड़वे लगे हों तो भी माफ़ी नहीं मागूँगी।
आपको…और..आपकी कविता को प्रणाम मैम….जय हो…
सही मानों में अगर औरत ,मर्द के बराबर हो जाए तो यह प्रश्न खुदबखुद ख़तम हो जाएगा . मर्द किओंकि समाज में परधान है और शरीरक तौर पर भी ताकतवर है ,इस लिए यह सिलसिला ख़त्म होना मुश्किल सा लगता है .
jai……………ho………..thank u sir ji………pranam………….