गीतिका : खुशबू
बदलते वक्त के मौसम कली खुशबू ही लाती है,
सृजन करता अनोखा पल चली धरती सजाती है
पवन के झोको की रौनक, सजाता चाँद है कैसे?
महकता गुल औरगुलशन यही आतुर दिखाती है
तराना नित धरा छेड़े तसव्वुर, की तबस्सुम बन
जहाँ की हर खुशी उमड़े परी रौनक बढ़ाती है
गुले गुलजार हो उपवन, गले लग कर लगाएँ दिल
गुलिस्ताँ गुलबदन बनकर यही तासीर लाती है
मिले दो दिल खुशी बन कर, प्रणय की हो मधुर बेला
सजे जीवन फ़ज़ल रस्में तेरी ही याद आती है/
— राज किशोर मिश्र ‘राज
बहुत खूब .
आदरणीय जी आपकी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के ह्रदय तल से सादर अभिनन्दन
बेहतरीन गीतिका !
आदरणीय जी आपकी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के ह्रदय तल से कोटिश आभार एवम् नमन