गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : खुशबू

बदलते वक्त के मौसम कली खुशबू ही लाती है,
सृजन करता अनोखा पल चली धरती सजाती है

पवन के झोको की रौनक, सजाता चाँद है कैसे?
महकता गुल औरगुलशन यही आतुर दिखाती है

तराना नित धरा छेड़े तसव्वुर, की तबस्सुम बन
जहाँ की हर खुशी उमड़े परी रौनक बढ़ाती है

गुले गुलजार हो उपवन, गले लग कर लगाएँ दिल
गुलिस्ताँ गुलबदन बनकर यही तासीर लाती है

मिले दो दिल खुशी बन कर, प्रणय की हो मधुर बेला
सजे जीवन फ़ज़ल रस्में तेरी ही याद आती है/

राज किशोर मिश्र ‘राज

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि

4 thoughts on “गीतिका : खुशबू

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के ह्रदय तल से सादर अभिनन्दन

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतरीन गीतिका !

    • राज किशोर मिश्र 'राज'

      आदरणीय जी आपकी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के ह्रदय तल से कोटिश आभार एवम् नमन

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