कविता

कविता

अब नहीं लगते वो मेले
हँसी के वो बेफिक्र ठहाके
माप तौल ही अब तो बस दिखती
अब तो ऐसे हो गए हैं रिश्ते
तुम ना यूं उदास हो कि
अकेले नहीं चलेंगे यह सिलसिले
कदम अपना बढ़ाकर तो देखें
क्यूं कदम रह रहकर वापिस खींचे
राह से राह मिलती चलेगी
मुसाफिर वो जो मंज़िल से पहले
ना रूके बस सही राह टटोले

कामनी गुप्ता जम्मू

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

One thought on “कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

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