अनोखा जीवन
अनोखा जीवन पाकर कहे भाग्यवान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है
वैभव के लिए विभूषित जीवन को न रुलाओ
दुख को दिल से मिटाकर खुश होके दिखाओ
जिंदगी से बड़ा कोई मेहमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है
काली रात से क्यों डरे छँटेगा ये अंधकार
तेरे पतझड़ जीवन में भी आयेगी बहार
पत्थर है जिसमें ख्वाब और अरमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है
खुद में झाँक के देखो ये जिंदगी है हसीन
खुद से प्यार करो तो दुनिया लगेगी रंगीन
तुम्हें तो अभी खुद की भी पहचान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है
दिल को कभी न हारने दो मिलेगी जीत जरुर
इरादा पक्का हो तो पत्थर पर भी खिलेंगे फूल
उड़ के देखो तुमसे ऊँचा आसमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है
— दीपिका कुमारी दीप्ति
बढ़िया कविता !
हार्दिक धन्यवाद सर !
कविता अच्छी लगी .
सुन्दर कविता!!