कविता

अनोखा जीवन

अनोखा जीवन पाकर कहे भाग्यवान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है

वैभव के लिए विभूषित जीवन को न रुलाओ
दुख को दिल से मिटाकर खुश होके दिखाओ
जिंदगी से बड़ा कोई मेहमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है

काली रात से क्यों डरे छँटेगा ये अंधकार
तेरे पतझड़ जीवन में भी आयेगी बहार
पत्थर है जिसमें ख्वाब और अरमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है

खुद में झाँक के देखो ये जिंदगी है हसीन
खुद से प्यार करो तो दुनिया लगेगी रंगीन
तुम्हें तो अभी खुद की भी पहचान नहीं है

कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है

दिल को कभी न हारने दो मिलेगी जीत जरुर
इरादा पक्का हो तो पत्थर पर भी खिलेंगे फूल
उड़ के देखो तुमसे ऊँचा आसमान नहीं है
कैसा है इंसान मुख पर मुस्कान नहीं है

दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

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