गीतिका/ग़ज़ल

पल पल मरती ज़िन्दगी

ज़िन्दगी होती इबारत, एक तख्ती पे लिखी जो
मिटा के एक बार फिर सलीके से लिख लेती तुझको

जो  देख लेती तेरी सूरत, सुन ऐ गमे दो जहां,
मेरी सूरत, किसी सूरत न दिखलाती तुझको

जिगर में खंजर मार के जो एक बार पलट जाते वो,
सुकूँ दो जहां का कसम से मिल जाता मुझको

ग़मों के इन्तेहा की हद है मीलों से आगे
हदों के बढ़ते सिलसिले  जान से मारते मुझको

जिगर के छाले, फ़ैल कर यही कोहराम करें,
निकल जाती कहीं जो रास्ता मिल जाता मुझको

मैं खोते-खोते थक चुकी हूँ, खो चुकी हूँ वजूद अपना
बची है पल पल मरती ज़िन्दगी जो तक़लीफ़ देती मुझको।

_____ प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

4 thoughts on “पल पल मरती ज़िन्दगी

  • Man Mohan Kumar Arya

    कविता को कई बार पढ़ा। कविता में जिंदगी के प्रति कुछ तिरस्कार की भावना प्रतीत होती है। लगता है कि कवित्री बहिन जी ने विजय जी के शब्दों को पढ़ा नहीं। यदि विजयजी इसे अपने शब्दों स्पष्ट कर दें तो अच्छा हो। लेखिका को हार्दिक धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      shukriya aapka man mohan ji . zindagi hamesha phoolon ki sej nahi hoti . kabhi zindagi humara tiraskaar karti hai kabhi hum zindagi ka.. mene vijay ji ko request ki hai isme sudhar ki shayad us sudhaar ke baad ye aur bhi sundar ho jaaye .

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी भावनाएं अच्छी हैं, लेकिन कविता में मजा नहीं आया. कुछ सुधार की जरुरत लग रही है. आप कहें तो मैं कोशिश करूँ.

    • प्रीति दक्ष

      dhanywaad vijay ji.. sudhar ka main hamesha swaagat karti hoon.. zaroor koshish kijiye..

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