सलोने स्वप्न
‘Aman Chandpuri’ की कविता ‘सलोने स्वप्न’
सभी सलोने
स्वप्न मेरे
टूटकर
बिखर गये।
आँसू बनकर
आँखों से
होले-होले
झर गये।
अपनी आँखों को
बुझाये
आज-कल
फिरता हूँ मैं।
आँखें मिलाके
बात करने से
आज-कल
डरता हूँ मैं।
कहीं कोई
न देख ले
दु:खो का
शैलाब इसमें।
स्वप्न आँसू
बनकर मेरे
छुपके
समायें हैं जिसमें।
अपनी आँखें
मूंदकर
दुनिया से
चला जाऊगाँ।
फिर तुम्हारे
स्वप्न मे
मैं रोज-रोज
आऊगाँ।
— अमन चाँदपुरी
रचना – 2 जनवरी 2015, मुकारिम नगर (लखनऊ)