गीतिका/ग़ज़ल

कल तक कलकल गान सुनाता बहता पानी

कल तक कलकल गान सुनाता बहता  पानी

बोतल में हो बंद छंद अब भूला पानी

 

प्यास बुझाती थी जो सबकी दानी नदिया

है तलाशती हलक हेतु थोड़ा सा  पानी

 

हाथ कटोरा धरे द्वार पर जोगी सावन

मानसून से माँग रहा है भिक्षा, पानी

 

जब संदेश दिया पाहुन का काँव-काँव ने

सूने घट की आँखों में भर आया पानी

 

रहता है अब महलों वाले तरण-ताल में

पनघट का दिल तोड़ दे गया धोखा पानी

 

जाने कब जल-पूरित हो पट पड़ा सकोरा

खुली छतों से नित्य पूछती चिड़िया पानी

 

तैर रहा था जो युग-युग से भव-सागर में

वही “कल्पना” अब कलियुग में डूबा पानी

 

कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- kalpanasramani@gmail.com

3 thoughts on “कल तक कलकल गान सुनाता बहता पानी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

  • सूर्यनारायण प्रजापति

    अच्छी ग़जल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

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