कुछ कुंडलियाँ
दिन ने खोले नयन जब , बड़ा विकट था हाल ,
पवन, पुष्प, तरु, ताल, भू , सबके सब बेहाल |
सबके सब बेहाल, कुपित कुछ लगते ज्यादा ,
ले आँखों अंगार, खड़े थे सूरज दादा |
घोल रहा विष कौन, गरज कर जब वह बोले ,
लज्जित मन हैं मौन, नयन जब दिन ने खोले ||१
दिनकर देता ताप जब , लेता नहीं विराम ,
हरने को संताप, तब , आओ न घनश्याम |
आओ न घनश्याम , फूल , कलियाँ हर्षाएँ ,
सरसें मन अविराम , मगन हो झूमे गाएँ |
धरा धार ले धीर , गीत खुशियों के सुनकर ,
कुछ तो कम हो पीर, लगे मुस्काने दिनकर ||२
नन्हीं बूँदें नाचतीं , ले हाथों में हाथ ,
पुलकित है कितनी धरा , मेघ सजन के साथ
मेघ सजन के साथ , सरस हैं सभी दिशाएँ
पवन-पिया के संग , मगन मन मंगल गाएँ
अब अँगना के फूल , ठुमक कर नाचें कूदें
भिगो गईं मन आज , धरा संग नन्हीं बूँदें ||३
अच्छी कुंडलियाँ !
बहुत बहुत धन्यवाद !