मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

ठंडी बयार मन को मेरे गुदगुदा गई
झुलसे हुए बदन को थोड़ा सरसरा गई
काली घटा को प्यार से दामन में समेटे
हौले से इक फुहार मुझे थपथपा गई

पंच तत्व में सूर्य रश्मि ने ऊर्जा का संचार किया
चित्र कार ने नवल चित्र का रंगों से श्रृंगार किया
शस्य श्यामला माँ ने भरी बलायें उन्नत यौवन की
किन्तु नियति के कालचक्र ने जीवन का संहार किया

— लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

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