दो मुक्तक
ठंडी बयार मन को मेरे गुदगुदा गई
झुलसे हुए बदन को थोड़ा सरसरा गई
काली घटा को प्यार से दामन में समेटे
हौले से इक फुहार मुझे थपथपा गई
पंच तत्व में सूर्य रश्मि ने ऊर्जा का संचार किया
चित्र कार ने नवल चित्र का रंगों से श्रृंगार किया
शस्य श्यामला माँ ने भरी बलायें उन्नत यौवन की
किन्तु नियति के कालचक्र ने जीवन का संहार किया
— लता यादव
अच्छे मुक्तक !