करारी कुण्डलियाँ
हास्य व्यंग का हर कवि पहलवान श्रीमान ।
शब्दों का मुगदर बना द्वंद्व करे बलवान ।
द्वंद्व करे बलवान कि कस के काव्य लंगोटी ।
कर देता अच्छे अच्छों की बोटी बोटी ।
कह पुनीत कवि मारे ये कविता में ऐसी लात ।
हास्यकवि का व्यंग पटकनी देवे धोबी पाट ।
कुटिल क्रूर तानाशाहों से लेते लोहा ।
धूल चटा दे एक जो पड़े दोहत्था दोहा ।
मारे यों कटाक्ष के कद्दावर कवित्त ।
नेता अफ़सर धूर्तमूर्त, हों चारों खाने चित ।
कह पुनीत कविराय व्यंग की वक्र ये दृष्टि ।
धरा लिटा दे दुष्ट भ्रष्ट को वज्र ये मुष्टि ।
रेस कोर्स की रेस में अव्वल आने की हाय ।
खच्चर टट्टू और गधों को घोड़ा देय बनाय ।
घोड़ा देय बनाय मुल्लायम हो या लल्लू ।
या पप्पू सा निरा काठ का बस हो उल्लू ।
तो कह पुनीत कवि कजरू हो जयललिता ममता ।
आकांक्षा का अश्व न कोउ थामे थमता ।
पुनीत ‘नई देहलवी’
बहुत खूब !