वट वृक्ष
वट वृक्ष की अनुपम छाया में,
ममता मय अनुराग लिये /
बैठी धीर प्रवीण सी बाळा,
अनुपम मन उद्वेग लिये /
वट वृक्ष सा कोई वृक्ष नहीं ,
ममता मय जीवन ज्योति यही /
सुख सन्तति वरदान है मंगल,
सौभाग्य चंद्र शिव संग भी मंगल /
महाकाल करें भक्त की रक्षा ,
जन -जन की लेते हैं परीक्षा /
मनसा ,वाचा, कर्म रहे दृढ ,
अटल , अमोघ ,अनादि, सत्य सी /
खुशहाली भी झूम -झूम ,
नित बरसे प्रेम बदरिया /
वट वृक्ष की शाखा सदा ही झूले,
नित प्रेम डोर सावन सी /
वट सावित्री पूजन से ,
मिलतासौभाग्य है जीवन में /
मनोकामना पूर्ण सहज हो ,
खुशहाली मिलती जीवन में/
— राजकिशोर मिश्र राज
आपकी कविता अच्छी है, पर लगता है कि आप हमारी ईमेल को नहीं पढ़ते. इस कविता में कई जगह में को मे लिखा गया है. आप कब ठीक लिखेंगे?
आदरणीय सिंघल जी आपका मेल सदैव पढ़ता हूँ आगे हस्व दीर्घ , विराम और अर्ध विराम एवम् व्याकरण पर विशेष ध्यान दूँगा