हाँ तुम!!
हाँ तुम!!
मुझसे प्रेम करो।
जैसे मैं तुमसे करता हूँ।
जैसे मछलियाँ पानी से करती हैं,
उसके बिना एक पल नहीं रह सकती।
जैसे हृदय हवाओं से करती है
हवा बिना हृदय गति रूक जाती है
हाँ तुम !!
मुझसे प्रेम करो।
चाहे मुझको प्यास के पहाड़ों पर लिटा दो।
जहाँ एक झरने की तरह तड़पता रहूँ।
चाहे सूर्य की किरणों में जलने दो,
ताकि तुम उस सूर्य की तेज लपट में
मुझे दिखाई देती रहो।
हाँ तुम !!
मुझसे प्रेम करो।
उस उजाला की तरह।
जो मीठी -मीठी सुबह में आकर ,
सबको मिठास देती है।
उस चाँदनी की तरह,
जो बिन बताये रातों में आकर,
शीतलता प्रदान करती है।
हाँ तुम !!
मुझसे प्रेम करो।
उस कोयल की कुक की तरह,
जो कानों में सुरीली आवाज़ देकर
मन को शांत करती है।
उस मोर-मोरनी की तरह
जो अपनी सुन्दरता को दिखाकर
मन को मोहिनी बना देती है।
@रमेश कुमार सिंह
http://shabdanagari.in/website/article/हाँतुमकविता-6109
बहुत सुन्दर !
धन्यवाद श्रीमान जी।