कविता

जी लो मुझे

लो जी लो मुझे
ज़िंदगी की एक बूँद हूँ मैं
पी लो मुझे
मेरे कण कण में
डूब जायेगा तू
साँसों के झरनों में नहायेगा तू
उतर जा मेरी रूह में
बूँद में मिल बूँद हो जाएगा तू

तेरे कण कण में
डूबने से पहले
सुन तो लू
अपना नाम तेरे होंठो से
उतार तो लू वो सुखी उष्ण मिट्टी
जो मरुस्थलो ने मुझ को दी
तब तेरे नैनो में गोता लगाउगी
देखना कही
मृगतृष्णा की तरह
बूँद प्यासी ना रह जाए …!!

रितु शर्मा

रितु शर्मा

नाम _रितु शर्मा सम्प्रति _शिक्षिका पता _हरिद्वार मन के भावो को उकेरना अच्छा लगता हैं

One thought on “जी लो मुझे

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर !

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