स्वास्थ्य क्या है?
स्वस्थ रहना सबसे बड़ा सुख है। कहावत भी है- ‘पहला सुख निरोगी काया’। कोई आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनन्द उठा सकता है, जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक स्वास्थ्य अनिवार्य है। ऋषियों ने कहा है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् यह शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है। यदि हम धर्म में विश्वास रखते हैं और स्वयं को धार्मिक कहते हैं, तो अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारा पहला कर्तव्य है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, तो जीवन भारस्वरूप हो जाता है।
यजुर्वेद में निरन्तर कर्मरत रहते हुए सौ वर्ष तक जीने का आदेश दिया गया है- ‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत्छतं समाः’ अर्थात् ”हे मनुष्य! इस संसार में कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा कर।“ वेदों में ईश्वर से प्रार्थना की गयी है- ‘पश्येम् शरदः शतम्, जीवेम् शरदः शतम्, श्रुणुयाम् शरदः शतम्, प्रब्रवाम् शरदः शतम्, अदीनः स्याम् शरदः शतम्, भूयश्च शरदः शतात्’ अर्थात् ”हम सौ वर्ष तक देखें, जीयें, सुनें, बोलें और आत्मनिर्भर रहें। (ईश्वर की कृपा से) हम सौ वर्ष से अधिक भी वैसे ही रहें।“
एक विदेशी विद्वान् डा. बेनेडिक्ट जस्ट ने कहा है- ‘उत्तम स्वास्थ्य वह अनमोल रत्न है, जिसका मूल्य तब ज्ञात होता है, जब वह खो जाता है।’ एक शायर के शब्दों में- ‘कद्रे-सेहत मरीज से पूछो, तन्दुरुस्ती हजार नियामत है।’
प्रश्न उठता है कि स्वास्थ्य क्या है अर्थात् किस व्यक्ति को हम स्वस्थ कह सकते हैं? साधारण रूप से यह माना जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक और मानसिक रोग न होना ही स्वास्थ्य है। यह एक नकारात्मक परिभाषा है और सत्य के निकट भी है, परन्तु पूरी तरह सत्य नहीं। वास्तव में स्वास्थ्य का सीधा सम्बंध क्रियाशीलता से है। जो व्यक्ति शरीर और मन से पूरी तरह क्रियाशील है, उसे ही पूर्ण स्वस्थ कहा जा सकता है। कोई रोग हो जाने पर क्रियाशीलता में कमी आती है, इसलिए स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
— विजय कुमार सिंघल
behad upyogi lekh.. prernadaayak ..
आभार, मान्यवर !
सारगर्भित और बहुत उपयोगी लेख। आपको इस सुन्दर लेख के लिए हार्दिक धन्यवाद। लेख पर श्री गुरमेल सिंह भमरा जी के कमेंट्स भी महत्वपूर्ण हैं। मुझे इंग्लिश की एक कविता याद आ गई। बचपन में स्कूल की कापियों पर बांस के पेपर की प्रिंटेड जिल्द पर यह छपी रहती थी। कविता है : Wealth is gone nothing is gone, Health is gone something is gone, Character is gone everything is gone. इस कविता में वेल्थ से अधिक हेल्थ को महत्व दिया गया है। स्वास्थ्य से मिलता जुलता एक श्लोक यह भी है : तेजो असि तेजो मयि धेहि। वीर्यं असि वीर्यं मयि धेहि। बलम असि बलं मयि धेहि। ओजो अस्योंजो मयि धेहि। मन्युरसि मन्युं मयि धेहि। सहोअसि सहोमयी धेहि। आपका पुनः हार्दिक धन्यवाद। .
आभार मान्यवर !
विजय भाई , सही बात है सिहत नहीं तो कुछ भी नहीं . मैं किसी की बात नहीं करता ,सिर्फ अपनी बात ही करूँगा कि मैं ने शुरू से ही ऐक्सर्साइज़ की है .गाँव में भी करता रहा हूँ , वैसे भी गाँव की जिंदगी में तो पशुओं के लिए चारा कुतरते ही ऐक्सर्साइज़ हो जाती थी . यहाँ भी काम पर सुबह चार वाजे उठ कर आधा घंटा योग करता था , इस का फैदा मुझे बहुत हुआ लेकिन अब तो निऊरोन की प्राब्लम हो गई है जिस में ब्रेन सेल्ज़ की दीजैन्रेशन शुरू हो गई है जिस का कोई इलाज नहीं है . निओरो डाक्टर नें तीन से पांच साल दिए थे कि मैं बिस्तरे में हमेशा के लिए पड़ जाऊँगा . मैंने इन्तार्नैत पे सभ कुछ पड़ा और मैंने ऐक्सर्साइज़ पहले से भी बड़ा दी . दो घंटे रोज़ मैंने रेगुलर कर दिए हैं . आधा घंटा मैं ब्रीदिंग जिस में लोम बिलोम कपालभाती और भस्त्रिका है रीलीजिअसली करता हूँ . इस का फैदा मुझे यह हुआ कि अब गिआरवा साल है और जिंदगी को चलाये जा रहा हूँ . मैंने यह बात बहुत दफा लिखी है और आगे भी लिखता जाऊँगा किओंकि हो सकता है यह पड़ कर किसी को फैदा पौहंच जाए . ऐक्सर्साइज़ के इलावा खुराक भी अच्छी हो , फैदा अवश्य होगा .
धन्यवाद, भाई साहब ! यह बात शत प्रतिशत सत्य है कि अच्छी सात्विक खुराक और योग प्राणायाम से कोई भी रोगी स्वस्थ हो सकता है.