संस्मरण

मेरी कहानी – 35

तल्हन गुरदुआरे से बाहिर निकल कर हम उस डेरे की ओर जाने लगे यहां एक सिंह जी लोगों की मुश्किलें हल किया  करता था। जब हम वहां पुहंचे तो काफी औरतें और मर्द बृक्षों की छाँव  के नीचे बैठे थे और बाबा जी का इंतज़ार कर रहे थे। मैंने सुना तो बहुत दफा था कि कुछ लोग पुछां देते थे यानी लोगों के सवालों के जवाब भूतों चुड़ैलों से पूछ कर देते थे लेकिन कभी देखा नहीं था। ऐसा माना जाता था कि इन लोगों के वश में भूत होते हैं। सिखों में ऐसे काम वर्जित हैं लेकिन मुझे यह कभी समझ नहीं आई कि यह कैसे हो रहा था। यहां लोग बैठे थे वहां एक छोटी सी ईंटों की एक जगह बनी  हुई थी जिस के दोनों तरफ दिये रखने के लिए जगह बनी हुई थी और घी के  दिए जल रहे थे। यहां तक मुझे याद है इन लोगों में एक भी मर्द या औरत पड़ा लिखा नहीं था सिवाए एक मास्टर स्वर्ण सिंह के  जो हमारे गाँव का था और प्लाही गाँव में हैड मास्टर लगा हुआ था।

यहां लोग बैठे थे उस के आखिर में किसी बृक्ष की लकड़ी का एक बहुत बड़ा टुकड़ा  पड़ा हुआ था। हम सब दोस्त उस लकड़ी पर बैठ गए। कुछ देर बाद बाबा जी आ गए और सब लोग हाथ जोड़ कर बाबा जी की बातें सुनने के लिए तैयार हो गए। चढ़ावे के तौर पर लोगों ने बहुत सी चीज़ें उस छोटी सी जगह के पास रखी हुई थीं जो ज़्यादा तर कुछ पैसों से लेकर दूध की बाल्टीआं, सब्जिआं, फ्रूट और घर के बने खादी के  कपडे थे। बाबा जी ने आ कर पहले सब का  चढ़ावा देखा , उन के ऊपर अपना हाथ फेरा और कुछ देर बाद उस छोटी सी जगह जिस को मटी कहते थे उस के ऊपर अपना हाथ रखा और मुंह में कुछ पड़ने लगे। सभी लोग धियान से बाबा जी की ओर देखने लगे।

बाबा जी एक दम बोलने लगे ,जैसे किसी से बातें कर रहे हों , ” ओए तू कौन हैं , मैंने तो तुझे बुलाया नहीं था , खामखाह दांत बाहिर ना निकाल नहीं तो ऐसी सजा दूंगा कि तुम को नानी याद आ जायेगी , ओए तू पीछे कौन है जिस के बड़े बड़े दांत हैं , ओए तू बड़ी बड़ी जटों वाला , इधर हट, धनगुरु वढ़भाग सिंह जी तेरी ओट है , ओ बाबा जी ,इस वक्त आप ने इतना कष्ट क्यों उठाया ? मैं खुद ही चल कर आ जाता। फिर एक दम जोर जोर से बाबा  जी चिलाने लगे , ओ कोई माई जिस का  आदमी बाहिर गिया हुआ है अभी तक वापिस नहीं आया ,आ जाए ओए। बहुत सी औरतें बाबा जी के सामने आ गईं। ओ तुम सारी पीछे हट जाओ ,सिर्फ पीली चुन्नी वाली आगे आ जाए। वोह औरत आगे आ गई। बाबा जी किसी भूत चुड़ैल से बातें करने लगे , “ओए सारी बात बता , हाँ किया कहा ,ज़रा ऊंचा बोल ,अच्छा तो यह बात है”। फिर बाबा जी औरत को सम्बोधन करके बोले , ओ माई ! तेरे खवंद ने कोई और औरत की हुई है , काम कुछ मुश्किल है लेकिन तू फ़िक्र ना कर। तू यहां की दस चौकीआं भर यानी दस दफा यहां आ और अपने घर में चार ईंटें रख कर घी का दिया जलाया कर और दूध में पानी डाल  कर रोज़ सारे घर में  इस दूध मिले पानी का छिड़का किया कर। अब जाह ,वढ़भाग  सिंह भला करेगा। फिर बाबा जी ऊंची आवाज़ में बोल उठे , ओए कोई औरत जिस के घर में चोरी हो गई ,आ जाए ! . इस तरह यह सिलसिला चलने लगा। यहां मैं यह भी बताना चाहूंगा कि उस ज़माने में  जो आदमी बिदेसों में जाते थे आठ आठ दस दस साल घर को वापिस नहीं आते थे ,कारण यह ही था, जितने हो सके पैसे कमाए जाएँ और अच्छा घर बना कर जमीन  भी खरीदी जा सके। विचारी औरतें अपने पतिओं  की इंतज़ार में बूढ़ी  हो जाती थी  लोगों ने तो यहां टूटी फूटी गोरिओं से शादी भी कर ली थी। इसी लिए विचारी अनपढ़ औरतें ऐसे ढेरों पर जा कर अपना समय और धन बर्बाद करवाती थी।
यहाँ हम दोस्त उस लकड़ी के ऊपर बैठे थे  ,वहां एक आदमी हमारे गाँव का  भी बैठा था जो बहुत शरीफ इंसान था लेकिन उस का चेहरा ऐसा था जैसे बहुत बड़ा डाकू हो , उस की कुंडलिओं वाली बड़ी बड़ी मूंछें थीं और उस की आँखें सुर्ख थीं। उस की पगड़ी  भी बहुत ही सीधी साधी थी। उस का नाम था मैहँघा सिंह। उस को देख कर बाबा जी ने समझा  होगा कि इस आदमी ने शराब पी हुई होगी ,इस लिए लोगों को पर्भावत करने के लिए एक नाटक किया। बाबा जी अपने मुंह और गालों पर चुपेड मारने लगे और अपने आप से  बोलने लगे “हाए ओए ,मर गए ओए ,बाबा जी मुझ से क्या कसूर हो गया ?” फिर एक दम चीख उठे , ओए कोई पापी यहां शराब पी कर तो नहीं आया ? हाए  ओए ,ओ पापिया यहां से चला जाह। सभी लोग मैहँघा सिंह की ओर देखने लगे और उस को वहां से जाने के लिए कहने लगे।
वोह कह रहा था कि उस ने कोई शराब बगैरा नहीं पी हुई थी लेकिन लोगों ने जबरदस्ती उस को वहां से उठा कर भेज दिया। मैहँघा सिंह चले गिया और एक आदमी और था जो हमारे नज़दीक ही बैठा था। वोह बहुत तगड़ा  और उस का रंग बहुत काला था और उस ने अपना घोडा एक बृक्ष के साथ बाँधा हुआ था। इस शख्स को हम ने बहुत दफा देखा हुआ था , यह शख्स फगवारे के पुराने पोस्ट ऑफिस जो बंगा रोड पर होता था  वहां से  बराम को जो छोटा सा क़स्बा था तांगा चलाया करता था और हम इस को अक्सर आवाज़ें देते हुए देखते रहते थे ,” चलो एक सवारी बराम ओ.… बराम बराम बराम ओ.…।  “
गर्मी बहुत थी और डेरे में बैठे सभी लोगों को शक़्क़र का शरबत पिलाया  गिया, गर्मी में सभी के चेहरे मुरझाये हुए थे। वोह टाँगे वाला काला  शख्स ऊंची ऊंची कुछ बोलने लगा। वोह आ आ  ऊ ऊ चीख रहा था। उस का करूप चेहरा देख कर हम सभी लड़के हंसने लगे। हमारी हंसी उसको देख कर बंद नहीं हो रही थी, तभी बाबा जी की धर्म पत्नी वहां आ गई और हम को डांटने लगी और कहने लगी,” इन लड़कों को अब हंसी आ रही है , अगर इन को कुछ हो गिया तो इन के माँ बाप यहां आकर हमारे पैरों पर अपने माथे रगड़ेंगे, उस विचारे  आदमी को कोई भूत सता रहा है और इन को हंसी सूझ रही है”. डेरे में बैठी सभी औरतें हमारी तरफ देखने लगी और हम को कहने लगीं ” ए  लड़को चुप कर जाओ , कोई मुसीबत मोल ना ले लेना “. हम चुप कर गए।
कुछ देर बाद वोह काला शख्स चुप हो गिया। मैंने उस के कंधे पर हाथ रखा और बोला ” किया हुआ था तुझे ,क्यों चिल्ला रहा था ?”. वोह बोला , ” ओए लड़को मुझे अफीम की लत्त लगी है , रोज़ अफीम लेता हूँ ,आज मेरी अफीम घर में रह गई, मेरा नशा टूट गिया था , जब मेरा नशा टूटता है तो अफीम के बगैर मेरी हालत बहुत बुरी होती है , मैं तो यहां अपने घोड़े को ले कर आया था क्योंकि यह कुछ दूर चल कर सीधा खड़ा हो जाता है , कई दफा टाँगे में बैठी सवारीओं को भी चोट लगी, मैं तो यहां यह पूछने के लिए आया था कि इस को कोई भूत चुड़ैल तो दिखाई नहीं देती ?” हम सब हैरान हो गए।
 इसी तरह चार पांच बज गए होंगे कि बाबा जी कुछ नॉर्मल से हो गए और लोग बातें करने लगे कि बाबा जी की  हवा अब दूर हो गई थी। अब आम साधारण बातें होने लगी, बाबा जी लोगों से बातें करने लगे। मास्टर स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी आगे आ गए और बाबा जी को माथा टेक कर रोने लगे और कहने लगे ,” हमारे घर में कब बच्चा खेलेगा ? बाबा जी हम बहुत दुखी है ,भगवान का दिया सब कुछ है लेकिन कोई बच्चा नहीं है, आप जाणी जान हो “। बाबा जी कुछ देर सोचते रहे और फिर एक बड़ा सा आम उठा कर स्वर्ण सिंह की पत्नी की झोली में डाल दिया। सब लोग बातें करने लगे कि यह औरत कितनी भाग्यशाली थी कि बाबा जी ने उन की झोली में आम की शकल में बेटे की दात दे दी थी। फिर कुछ औरतें बाबा जी को ज़िद करने लगी कि बाबा जी उन के घर में  चरण पाएं लेकिन बाबा जी कह रहे थे कि वोह किसी के भी घर नहीं जाते लेकिन औरतें कह रहीं , “बाबा जी आप को आना ही पड़ेगा “. बाबा जी बस हंस दिए। इस के बाद धीरे धीरे लोग उठ कर जाने लगे और हम ने भी अपने बाइसिकल उठाये और गाँव को चल दिए।
 जब एक बार मेरे पिता जी अफ्रीका से आये तो यह सारी कहानी मैंने पिता जी को सुनाई। पिता जी सुबह शाम पाठ करने की वजाए किसी वहम व् भरम को नहीं मानते थे। इन सब बातों को वोह नफरत करते थे। कुछ ही दिनों बाद मेरी भाबी ने मुझे बताया कि वोह बाबा आज हमारे गाँव में आया हुआ है और इस वक्त हमारी गली में ही रामी  के घर बैठा था. मैंने पिता जी को बताया। पिता जी एक दम उठ गए और मुझ को बोले ,”चल रामी  के घर चलते हैं “. जब हम रामी  के घर जा  पुहंचे तो बाबा जी एक चार पाई पर बैठे थे और पंदरा बीस औरतें वहां बैठी थी। पिता जी ने जा कर बाबा जी को सत सिरी अकाल  बोला और एक तरफ हम दोनों बैठ गए। सभी औरतें चुप चुप बैठी थीं। एक औरत बाबा जी को पंखा कर रही थी।
फिर अचानक बाबा जी झूमने लगे और अपने भूतों प्रेतों से बातें करने लगे। पिता जी क्योंकि बिदेस से आये थे और अफ्रीका से आये सिंह लोगों की पगड़ी एक ख़ास ढंग से बाँधी हुई होती थी ,इस लिए बाहिर से आये लोगों को गाँव के लोग जल्दी पहचान जाते थे कि यह शख्स बाहिर से आये हुआ था। बाबा जी अपने भूतों  से बातें करते हुए बोले ,” कुछ नहीं , यह सरदार जी बाहिर से आये हुए हैं , इन के मन में कोई प्रश्न है “. फिर बाबा जी ने पिता जी की तरफ देख कर पिता जी को कहा ,” सरदार जी तुम्हारा कोई प्रश्न है?”. पिता जी बोले ,” नहीं प्रश्न तो कोई नहीं , सिर्फ आप के दर्शन ही करने थे ” और उठ कर जाने के लिए तैयार हो गए ,मैं भी उठ खड़ा हुआ। जब बाहिर आये तो पिता जी ने जोर से गाली दी, “साला  हरामजादा पाखंडी मक्कार “. और हम घर आ गए।
यहां यह भी बता दूँ कि मास्टर स्वर्ण सिंह के घर कभी बच्चा नहीं हुआ , बहुत वर्षों बाद उन्होंने एक लड़की गोद ले ली थी ,
चलता ……

4 thoughts on “मेरी कहानी – 35

  • Man Mohan Kumar Arya

    आज की क़िस्त के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। पूरी की पूरी कथा बहुत रोचक एवं आँखे खोलने वाली है। यह चालाक लोग भोले भाले अंधविश्वासी लोगो को बहका फुसला कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। हमारे यहाँ मूर्तिपूजा, फलित ज्योतिष, व्रत उपवास, अवतारवाद मृतक श्राद्ध यह सब अन्धविश्वास फैलाकर कुछ लोगो की आजीवका बनाई गई है। इन्हे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि इन्होने कौम, जाति, देश व समाज की कितनी हानि की है। यदि यह अन्धविश्वास न होते तो ना तो हम विधर्मियों से युद्ध में पराजित हुवे होते, न हमारे मंदिर टूटते व लूटते और न कोई हमें गुलाम बनाकर अपमानित करता व हमारी बहिनो व बेटिओं की इज्जत ख़राब करता। अज्ञान एवं अन्धविश्वास मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु है। आजकल झूठी श्रद्धा को आस्था बता कर अंधविश्वासों को बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारे भाई लोग ऐसे है जो समझाने पर भी समझते नहीं हैं। इन्होने झूठे बाबाओं को अपना धन दे दे कर मालामाल कर दिया है। मुझे आपके पिता जी के शब्द जो उन्होंने उस पण्डे को कहे बहुत अच्छे लगे। कई बार मेरे साथ भी ऐसा ही होता है। पुनः धन्यवाद।

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने भूत प्रेत का डर दिखाकर लोगों को उल्लू बनाने वाले बाबाओं की अच्छी पोल खोली है। भूत प्रेत कुछ नहीं होते लेकिन लोग डरते हैं और इसी का फ़ायदा धूर्त लोग उठा लेते हैं। ऐसे लोग मेरे सामने आ जायें तो मैं मिनटों में उनका भूत उतार दूँगा।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      हा हा विजय भाई , जो कुछ मैंने लिखा है, बातें इस से भी ज़िआदा थीं , वोह पाखंडी का डेरा और उस का चेहरा अभी तक मुझे याद है . दुःख सिर्फ इस बात का होता है कि हमारे लोग किस मट्टी के बने हुए हैं कि ऐसे धूर्त लोगों पर अपना तन मन और धन सभी कुछ लुटा देते हैं और इन को होश तब आती है जब सर से पानी निकल चुक्का होता है . यहाँ के लेस्टर शहर में एक मुसलमान नौजवान हिन्दू नाम रख कर लोगों का शोषण कर रहा था ,उस ने लोगों से साढ़े छे लाख पाऊंड लुटे . इंडियन वर्कर्ज़ एसोसिएशन उस के पीछे बहुत देर से लगी हुई थी . कुछ दिन हुए इस धूर्त को ९ साल की कैद हुई है . इन बाबाओं को छोड़ मुझे दुःख लोगों की मानसिकता पर होता है .

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