कविता

गंगा —कहे पुकार के

कहीं कहा मुझे गंगा मैया कहीं मुझे जीभर के दूषित किया |
किसे मैं सुनाऊं अब बर्बादी की अपनी यह दास्ताँ |
हैं अपने या फिर कोई बेगाने जो करते हैं यह खता |
युगो – युगों से बहती आती मेरी निर्मल धारा |
तुमने क्या किया मैने तो तुम्हारा सब कुछ संवारा |
पूछती है हार के अब यह सवाल तुम्हारी गंगा मैया |
वादे यूं वादे ना रह जाँए रहम अब तुम कुछ मुझ पर करना |
बहती रहूं यूंही कल – कल जल के मीठे स्रोत्र लिए |
फिर पहले जैसी गंगा बन पाऊं बस यही सपना मेरा |
कहे गंगा अब पुकार के सुन लो मेरी दास्ताँ |||
कामनी गुप्ता जम्मू ***

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

4 thoughts on “गंगा —कहे पुकार के

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जागरूपता के लिए अच्छी कविता है .

    • कामनी गुप्ता

      dhanyabad sirji

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • कामनी गुप्ता

      Thanks sirji

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