इमरजेंसी से तुम्हे एक ही आदमी बचा सकता है !
आपको गब्बर का वह तकिया कलाम याद होगा ” गब्बर से तुम्हे सिर्फ एक ही आदमी बचा सकता है -खुद गब्बर !! तो भाई फिर हम तो ये भी जानते हैं की हमें इमरजेंसी से कौन बचा सकता है ? वही न जो आज हमें इमरजेंसी का डर दिखा रहे हैं ! सिर्फ सत्ताधारी राजनेता !! क्यूँ की एक बार उसने इमरजेंसी लागू कर दी तो फिर विपक्ष की क्या औकात रह जाती यह हम देख चुकें हैं ! राजनैतिक दृष्टिकोण से लोग भले ही इसमें मोदी एंगल खोजने में लगे हो, आडवानी जी के दरकिनार होने का दर्द ढून्ढ रहे हो या फिर बी जे पी इस वक्तव्य को बिना मोदी एंगल और आडवानी के अघोषित राजनैतिक बहिष्कार से जोड़ भी सही ठहराने में लगी हो लेकिन इसमे कोई दो राय नहीं की इमरजेंसी की आशंका से इनकार इसीलिए नहीं किया जा सकता की भविष्य में इसपर प्रतिबन्ध के लिए एक बार इमरजेंसी को भोग लेने के बावजूद अब तक कोई उपाय नहीं किया गया ! मतलब गब्बर अभी जिन्दा है ! और माँ यह कहने पर मजबूर है की बेटे सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा ! क्या आडवानी भी यही नहीं कह रहे ?
अब यह वाजिब सवाल भी मैं उनसे पूछना नहीं चाहूँगा की फिर आपने अपने शासन काल में इसके लिए क्यूँ कुछ नहीं किया ? नहीं पूछूँगा !! क्यों की पहली बात तो इसके जवाब में मिलने वाली सफाई का अब कोई अर्थ नहीं ! और दूसरा इससे आरोप प्रत्यारोपों का हमेशा की तरह मूल मुद्दे को ठन्डे बसते में डालने का दौर शुरू होने के अलावा और कुछ नहीं होगा ! लेकिन क्या आपको भी आश्चर्य नहीं हुवा की ऐसे तो हर समस्या की जड़ कांग्रेस में खोजने वाले स्वयं आडवानी जी ने इमरजेंसी जैसी बात पर इंदिरा गाँधी का नाम तक नहीं लिया ? क्या कोई भी बी जे पी से निष्ठा रखने वाला इतना बड़ा नेता कांग्रेस को नीचा दिखाने के इस मौके को भुनाए बिना छोड़ सकता था? इतने बड़े नेता की छोडिये किसी गली-मोहल्ले स्तर के बी जे पी नेता ने भी इमरजेंसी को लेकर इंदिरा गांधी के नाम के कसीदे नहीं पढ़ें !! क्यूँ ? जब की हाय कमान की अनुकम्पा पाने के लिए तो ऐसे मौकों को जमकर भुनाने में कोई भी पीछे नहीं रहेगा !! जब उनके सामने ऐसे हथकंडे अपनाकर अपने लिए मंत्रिपद आरक्षित करने में कामयाब रहे बडबोले लोगों के उदाहरण हो | लेकिन आडवानी के इतने गंभीर वक्तव्य की सफाई में भी किसी ने न तो भारत में इमरजेंसी का श्रेय इंदिरा को दिया और न ही उस बहाने कांग्रेस की हमेशा की तरह घोर आलोचना की !! यह किस बात के संकेत हैं ? यहाँ मैंने इमरजेंसी जैसी त्रासदी के लिए भी श्रेय शब्द का इस्तेमाल किया ! अगर यह बात आपको खटकी होगी और इसके पीछे की वजह जानने की कशमकश में आपको कुछ समझ में आया होगा तो आप भी उस चिंता से रूबरू होकर काँप उठेंगे जो शायद आज लोग अचानक इमरजेंसी की बात उठने पर इसे मात्र आडवानी की भड़ास या फिर मोदी पर ताना होने से आगे देख नहीं पा रहे |
तो चलिए पहले देखते हैं की आडवानी जी ऐसा क्यूँ कर रहे हैं ! मित्रों आपने अक्सर देखा होगा की रिटायर्ड अफसर या नेता अपना रिटायर्ड होना सुनिश्चित होने के बाद ही आम तौर पर किसी न किसी की पोल खोलकर अपनी देशभक्ति का सबुत देते हैं और उस बहाने उन्हें देश की चिंता होने का श्रेय भी ले लेते हैं ! मतलब जब तक सेवारत थे तब तक इनके लिए भी देशहित से ज्यादा स्वहित ,देश का क्या होगा इस सवाल से ज्यादा मेरा क्या होगा यह ज्यादा मायने रखता था इसको कुछ पल के लिए नजरअंदाज कर दें तो भी देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर कुछ सकारात्मक दिशा में सोचे तो इनके रिटायर्ड होने के बाद ही सही इनकी किसी किताब या पोलाखोलू खुलासे से देश के सामने ऐसा सच तो आता है जो शायद कभी सामने नही आता अगर इसे सामने लाने वाला किसी भी वजह से हो इसे उजागर नहीं करता ! क्यूँ की उनमे कई बाते ऐसी होती है जो आर टी आई तो क्या खोजी पत्रकारों ,विपक्ष के स्टिंग के तक दायरे से बाहर होती है ! और देर सवेर ही सही यह बातें देश के सामने तो आती है ताकि इसपर भविष्य में सुधार होने की दिशा में सर्फ चर्चा ही सही कुछ तो शुरू होता है ! कम से कम देश के अहितकारी तत्व या सीधे दुश्मन तो सामने आ जाते हैं ! यह भी कम नहीं !! और इसी कड़ी में आडवानी का यह बयान भी आज यही भूमिका निभा रहा है ! की इमरजेनसी जैसी समस्या पर आरोप प्रत्यारोपों से ऊपर उठकर सोचने को बाध्य कर रहा है !!
इस तरह के पूर्णत: निर्वासित लोगों के खुलासों की तुलना मैं अंशत: निर्वासित आडवानी के बयान से इसीलिए कर रहा हूँ क्यूँ की अभी भी उन्होंने भी अर्धसत्य ही कहा है ! पूर्ण सत्य की प्रसूति शायद पूर्णत: निर्वासन की वेदना शुरू होने के बाद ही हो लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी | यह कहने का साहस मैं इसलिए कर पा रहा हूँ की जैसे के मैं पहले भी आशंकित था और जिसके लिए मैंने श्रेय शब्द का प्रयोग भी किया की क्यों इस बार इमरजेंसी जैसे आरोपों पर एकाधिकार रखने वाली इंदिरा गाँधी और उनकी कांग्रेस पर भर भर कर ठीकरा नहीं फोड़ा जा रहा ? क्यों आडवाणी की इस टिप्पणी कि ‘जो शक्तियां लोकतंत्र को कुचल सकती हैं, वे मजबूत हैं’ का सम्बन्ध कांग्रेस से नहीं जोड़ा जा रहा ? जब की मजबूत कौन है और निकटतम भविष्य में भी कौन रहेगा इसका दावा आज कौन कर रहा है ये भी सभी जानते हैं ! किसकी सत्ता पाने की प्रवृत्ति उन्हें आपात काल को निमंत्रण लग रही है ?? अब देश में आपातकाल तो वही लगा सकता है न जो केंद्र की सत्ता में हो ? नितीश या लालू तो नहीं लगायेंगे !! मौजूदा मोदी सरकार के होते क्यूँ आडवानी ये दावे से कहने पर मजबूर हैं की 1975 से 77 तक आपातकाल के समय के बाद से ‘मैं नहीं समझता कि ऐसा कुछ किया गया है जो इस बात को पुख्ता करे कि नागरिक स्वतंत्रताओं को दोबारा निलंबित या नष्ट नहीं किया जाएगा। एकदम नहीं।’ ? इसमें ‘एकदम नहीं’ का क्या मतलब है ? अब तक नहीं किया गया यह समझा जा सकता है लेकिन भविष्य में भी दोबारा निलंबित या नष्ट नहीं किया जाएगा। एकदम नहीं।’ कहने का क्या मतलब है ??
बरसों तक इस देश के राष्ट्रवाद को अपनी व्याख्या से लागू करने का सपना देखने वालों के साथ साथ देश का शीघ्र विकास चाहने वालों के लिए भी तानाशाही पहली पसंद रही है और लोकतंत्र के होते यह उनकी मज़बूरी भी है | और पाकिस्तान के बहाने इस ख्याल को और भी तेल पानी समय समय पर दिया जाना यह सारी बातें किसी से छिपी नहीं है | और कभी उसी राष्ट्रवाद के हिमायती रहे आडवानी अगर किसी भी वजह से हो कुछ इशारा दे रहे हों तो इसे केवल आरोप प्रत्यारोपों की नाली में बहाने से पहले इसकी गंभीरता को समझे ! आडवानी जी की तरह मैं भी ये नहीं कह रहा की की कसी पर सीधा शक करों लेकिन इतिहास और आशंकाओं को मध्ये नजर रख और सतर्क हो जाएँ तो फिलहाल तो इतना ही काफी है ! लेकिन अब किसी धोखे में न रहना ही समझदारी होगी इस दिशा में सिलसिले को पार्टी प्रेम से ऊपर उठकर जलजला बनने से पहले ही शुरू करने के लिए इस देश के इस वरिष्ठ राजनेता को अपनी देश के प्रति अंशत: ही सही जिम्मेदारी निभाने का धन्यवाद !!
अडवाणी जी एक कुंठित नेता हैं। प्रधानमंत्री रद हाथ से फिसल जाने और मोदी जी के पास पहुँच जाने को वे आज तक स्वीकार नहीं कर पाये हैं। इसलिए वे आये दिन भव ज़लील बयान देते रहते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता।
उनकी बात को सत्य मानकर फ़ालतू आशंकाओं भरा लेख लिखना समय की बर्बादी मात्र है। कौओं के कोसने से साँड़ नहीं मरा करते। ऐसे बयानों और लेखों से मोदी जी कार्यकारी के स्थायित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।