लघुकथा

लघुकथा : स्वामी जी

स्वामीजी पर बलात्कार का आरोप लगा! पता नहीं सही था या आधारहीन क्योंकि प्रभु राम की तरह पूजनीय स्वामीजी को अब भी कोई रावन मानने के लिए तैयार न था। फ़िलहाल देश-विदेश में फैले हुए उनके समस्त अनुयायियों में हडकंप मच गया।

“ये सब झूठ है। साजिश है। धोका है। छलावा है। षड्यंत्र है। जालसाज़ी है। सरासर ग़लत है।” स्वामी जी सहित उनके तक़रीबन चाहने वालों ने मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में कुछ इसी तरह के मिले-जुले बयान दिए।

बलात्कार की शिकार युवती ने जो बयान दिया था। उसके आधार पर स्वामी जी के भव्यतम आश्रम पर पुलिस के रेड पड़ी और अनगिनित आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई। जैसे — हिरोइन, अफीम, चरस, गंजा स्मैक और विलायती शराब का बहुत बड़ा भण्डार सीलकर दिया गया। इसकी कीमत अंतर्राष्टीय मुद्राकोष में अरबों-खरबों डालर आँकी गई थी। देह व्यापार में लिप्त आश्रम की सैकड़ों युवतियां, जिनमे से अधिकांश विदेशी थीं, बरामद की गईं। उनमे से कुछ काल-गर्ल्स के बयान चौंका देने वाले थे। सत्तारूढ़ व विपक्ष के अनेक मंत्रीगण इन गैरकानूनी कामों में स्वामीजी के भागीदार और सहयोगी बताये गए थे। इसी कारण अब सरकार के गिरने का भी खतरा पैदा हो गया था। क्या आम आदमी, क्या राजनेता सभी की नींद उड़ गई थी। स्वामी जी ने रुपया-पैसा पानी की तरह बहाया मगर मामला शांत नहीं हुआ। अत: राजनीतिज्ञों द्वारा तुरंत आनन-फानन में एक आपात मीटिंग बुलाई गई। जिसमे स्वामीजी, बलात्कार की शिकार युवती और पक्ष-विपक्ष के फंसे हुए तमाम मंत्रिगण मौजूद थे। जिन्हें मीडिया ने लोकतंत्र का कर्णधार बताया था। बैठक में क्या-क्या कार्यवाही हुई और क्या-क्या फैसले लिए गए, यह उस रात तक परम गोपनीय था। आम-आदमी तक अपना ज़रूरी काम छोड़कर समाचार चैनलों से चिपका हुआ था कि आगे क्या होने वाला है?

सुबह वातावरण पूरी तरह से बदला हुआ था। खादीधारियों ने कैमरे के सामने निम्नलिखित बयान दिए–

“ये स्वामी जी को बदनाम करने की साजिश थी, महज़ घटिया पब्लिसिटी स्टंट था,” एक मंत्रीजी सिगरेट का धुँआ उड़ाते हुए बोले।

“स्वामीजी की पीठ पीछे सारे ग़ैर क़ानूनी कम हो रहे थे,” दूसरे मंत्री ने पान की पीक थूकी।

“जिन कार्लगर्ल्स ने नेताओं के नाम उछाले, वह सब पाकिस्तान की सर्वोच्च गुप्तचर संस्था आई० एस० आई० के लिए काम करती थीं,” कहते हुए तीसरे मंत्रीगण ने गुटके का पूरा पाउच मुंह में उड़ेल लिया।

“पूरा विश्व जान ले की संसद के बाहर पक्ष-विपक्ष एक है। भले ही संसद के भीतर, हमारे बीच कितने ही मतभेद क्यों न हों?” चौथे ने मुट्ठी भींचकर दांत फाड़ते हुए कहा और ऊँचे सुर में चिल्लाया, “हम सब साथ-साथ …”

“लोकतंत्र ऐसी बेहूदा हरकतों से टूटने वाला नहीं है,” पीछे से एक उतावले नेता ने औरों को धकियाते हुए कैमरे के आगे अपना थोबड़ा चमकाते हुए कहा।

इन सब बयानों से ज्यादा चौंका देने वाला सीन, जो सभी समाचार चैनलों ने प्रमुखता से दिखाया, उसे देख सब लोग आश्चर्यचकित थे। स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए सार्वजनिक रूप से उस युवती को बहन कहकर संबोधित किया और राखी भी बंधवाई, जिस युवती पर कल तक स्वामी जी के द्वारा बलात्कार का आरोप लगा था। इसके उपरांत दोनों भाई-बहन एक ही कार में बैठकर हाथ हिलाते हुए विदा हुए।

“यह लोकतंत्र की महान जीत है!” कार के ओझल हो जाने के उपरांत भीड़ में से किसी ने पता नहीं कटाक्ष क्या था या तारीफ़?

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “लघुकथा : स्वामी जी

  • विजय कुमार सिंघल

    हा हा हा हा…. बहुत करारी लघुकथा।

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