जलने को तैयार हूँ मैं !
(उ. प्र. शाहजहांपुर के निर्भीक पत्रकार जगेन्द्र सिंह को दबंगों द्वारा जिंदा जलाए जाने पर)
शोषित की आवाज़ जली है, इन्साफों के द्वार जले,
वाणी की अभिव्यक्ति जली है, संविधान के सार जले,
इन्कलाब के ग्रन्थ जले हैं, जन गन मन का गान जला,
पत्रकार का जिस्म न कहिये, पूरा हिंदुस्तान जला,
निडर और निर्भीक, शब्द का साधक,bसच का राही था,
भ्रष्टों के सिर पर जूता था, सच्चा कलम सिपाही था,
कलम उठाकर लड़ बैठा वो, सत्ता चूर दबंगों से,
और बगावत कर बैठा, सरकारी चंद लफंगों से,
मगर लोहिया के बेटों ने उनका कर्ज उतार दिया,
पत्रकार को घर में घुस जिंदा जलवाकर मार दिया
क्या कोई कर लेगा हम तो यूँ ही घुस कर मारेंगे,
डाकू को डाकू कहने वालों की खाल उतारेंगे,
इसीलिए तो शायद गुंडे सत्ता मद में झूम रहे,
जिन्हें जेल में होना था वो खुलेआम ही घूम रहे,
हत्यारों के सिर पर नेता कृपा बनाए बैठे हैं,
नही बोलते कुछ भी मुहं में दही जमाये बैठे हैं
और “भारती यश” लेकर कवि शायर भी चुप बैठे हैं,
युवा देखिये लैपटॉप को दोनों हाथ समेटे हैं,
मुझे नही ख्वाहिश इन सबकी, बात बताने आया हूँ
पिता जला, उन बच्चों की बस हाय सुनाने आया हूँ,
मुझे मौत का खौफ नही हर खौफ मिटाकर आया हूँ
मैं मुठ्ठी में उस जगेन्द्र की राख उठाकर आया हूँ
मैं वाणी का पुत्र, कलम का सैनिक, पानीदार हूँ मैं,
मुझको भी जिंदा जलवा दो, जलने को तैयार हूँ मैं !
अत्यंत निर्भीक लेखनी से निकली श्रेष्ठ कविता।