गजल
फूल बागों में खिले ये सबके मन भाते भी हैं।
मंदिरों के नाम तोड़े रोज ये जाते भी हैं।
चाहे माला में गुंथे या केश की शोभा बने
टूट कर फिर डाल से ये फूल मुरझाते भी हैं।
इन का हर रूप-रंग और सुरभि भी पहचान है
डालियों पर खिल के ये भौरों को ललचाते भी हैं।
फूल चंपा के खिलें या फिर चमेली के खिले
गुल ये सारे बाग़ के मधुबन को महकाते भी हैं।
भोर उपवन की सदा तितली से ही गुलजार है
फूलों का मकरंद पीने भौरे मँडराते भी हैं।
पेड़ पौधों से सदा हरियाली जीवन में रहे
फूल पत्ते पेड़ का सौन्दर्य दरसाते भी हैं।
—- शशि पुरवार
बहुत खूब !