गीत : है इस्लाम खतरे में…
न कोई नाम खतरे में, न कोई काम खतरे में,
सुना, कुछ चिठ्ठियाँ बोलीं कि है इस्लाम खतरे में,
ज़रा हम भी तो जाने क्यों भला,इस्लाम खतरे में,
कहाँ से आ गयी कैसी बला,इस्लाम खतरे में,
जो गूंजे मंदिरों में आरती,इस्लाम खतरे में?
जो पूजी जाए माता भारती,इस्लाम खतरे में?
कहीं हो ॐ उच्चारण तो है,इस्लाम खतरे में?
तिलक करले कोई धारण तो है,इस्लाम खतरे में?
गली में राम की लीला तो है,इस्लाम खतरे में?
अगर कपडे का रंग पीला तो है,इस्लाम खतरे में?
वतन की वंदना गाओ तो है,इस्लाम खतरे में?
तिरंगा छत पे लहराओ तो है,इस्लाम खतरे में?
जताया सूर्य को आभार,तो इस्लाम खतरे में?
किया जो योग का सत्कार,तो इस्लाम खतरे में?
अगर खतरा यही है तो चलो खतरा मिटा डालो,
समूचे हिन्दुओ के अंश-वंशो को जला डालो,
मगर ये सोच हिन्दोस्तान को बर्बाद कर देगी,
दिलों में नफरतों की आंधियां आबाद कर देगी,
ज़रा दिल को बड़ा कर लो,बड़ा जो दायरा होता,
न कोई ट्रेन ही जलती,न कोई गोधरा होता,
तड़पती मस्जिदों,घायल पड़े कुरआन को भेजो,
मियां ये चिट्ठियां ईराक पाकिस्तान को भेजो
कभी इस्लाम भारत की हदों में खो नही सकता,
यहाँ महफूज़ जितना है,कहीं भी हो नही सकता,
…कवि गौरव चौहान
बहुत अच्छा गीत! यह कैसा धर्म है जो ज़रा ज़रा सी बात से ख़तरे में पड़ जाता है।