आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 12)

सेवा शाखा का कार्य

मैं बता चुका हूँ कि उस समय हमारे बैंक की कानपुर की सेवा शाखा का काफी कार्य भी हमारे ही कम्प्यूटर सेंटर पर होता था, हालांकि उसे उनके ही कर्मचारी और अधिकारी करते थे। हमें इसमें लगातार तकनीकी मदद करनी पड़ती थी। उस समय सेवा शाखा का जो कार्य हमारे सेंटर में होता था, उसमें मुख्य था ड्राफ्टों का मिलान। इसका अर्थ है कि भारत के विभिन्न भागों से आये हुए जिन ड्राफ्टों का भुगतान कानपुर सेवा शाखा के माध्यम से होता था, उनकी प्रामाणिकता की जाँच और शाखाओं द्वारा भेजी गयी सूचनाओं का उनसे मिलान किया जाता था, ताकि कोई ड्राफ्ट में अधिक राशि भरकर भुगतान न ले ले। हालांकि यह मिलान भुगतान हो जाने के बाद ही किया जाता था, क्योंकि भुगतान से पहले ऐसी जाँच करना सम्भव नहीं है।

उस समय जिस प्रोग्राम के द्वारा यह कार्य किया जाता था, उसमें बहुत कमियाँ थीं और सेवा शाखा में पदस्थ कम्प्यूटर अधिकारी श्री पवन सक्सेना, जो हमारे सेंटर में बैठकर ही कार्य करते थे, बहुत परेशान रहते थे। दूसरी बात, वे यह चाहते थे कि ड्राफ्टों के मिलान का कुछ प्रारम्भिक कार्य कम्प्यूटर द्वारा डाटा प्रविष्टि के साथ ही कर लिया जाये, जिसका प्रावधान उस प्रोग्राम में नहीं था। इसलिए पवन जी ने मुझसे निवेदन किया कि मैं इस कार्य के लिए एक नया प्रोग्राम कोबाॅल भाषा में लिख दूँ। उस समय मेरे पास अधिक कार्य नहीं था, इसलिए मैंने यह प्रोग्राम लिखना स्वीकार कर लिया। लगभग दो-तीन सप्ताह की मेहनत और अनेक बार सुधार करने के बाद वह प्रोग्राम पवन जी की इच्छा के अनुसार ही तैयार हो गया। फिर पुराने डाटा को उस प्रोग्राम की आवश्यकता के अनुसार थोड़ा सुधारा गया और उस प्रोग्राम का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया गया।

उस प्रोग्राम में ऐसी व्यवस्था थी कि यदि ड्राफ्ट में कोई विशेष प्रकार की अनियमितता होती थी, तो वह तुरन्त पकड़ लेता था और उसकी चेतावनी देता था। उस चेतावनी को विशेष रूप से ध्यान देकर जाँचा जाता था। ऐसे ही एक बार प्रोग्राम ने एक ड्राफ्ट के बारे में चेतावनी दी। जब उसकी जाँच की गयी तो पता चला कि किसी ने मात्र 50 रुपये के ड्राफ्ट को बड़ी सफाई से जालसाजी द्वारा लगभग साढ़े चार लाख का बना लिया था और उसका भुगतान ले लिया था। यह पता चलते ही पूरा बैंक हरकत में आ गया। जालसाजी करने वालों का पता लगाया गया, तो ज्ञात हुआ कि वे अपने खाते से ड्राफ्ट का सारा रुपया निकालकर पहले ही चम्पत हो चुके थे। बाद में वे पकड़े गये और शायद काफी रुपया भी वसूल हो गया।

इस जालसाजी को मेरे द्वारा लिखे गये प्रोग्राम ने पकड़ा था, इससे मेरी धूम मच गयी। मंडलीय कार्यालय ने उस प्रोग्राम को और कड़ा करने का आदेश दिया, ताकि इससे मिलती-जुलती जालसाजी भी पकड़ी जा सके। मैंने उनके आदेश के अनुसार प्रोग्राम में कई सुधार कर दिये। वह प्रोग्राम कई साल तक चलता रहा और उसका उपयोग तभी बन्द हुआ, जब हमारे बैंक द्वारा सेवा शाखाओं हेतु एक बिल्कुल नया पैकेज खरीद लिया गया।

बम्बईवाली

उस समय हमारे मंडलीय कार्यालय में एक नई महिला कार्य करने आयीं। वे थीं बम्बई (आज की मुंबई) की श्रीमती नेहा नाबर। जब मैंने पहली बार उनको देखा, तो बहुत आश्चर्यचकित हुआ कि कोई महिला इतनी सुन्दर भी हो सकती है। उनका चेहरा ऐश्वर्या राय से बहुत हद तक मिलता जुलता है। मेरा उनसे कोई परिचय नहीं था और वे किसी से फोन पर बातें कर रही थीं। इससे मैंने अनुमान लगाया कि वे किसी अधिकारी की पत्नी हैं और वहाँ ऐसे ही अचानक आ गयी हैं। लेकिन अगली बार जब मैं गया, तो उनको फिर वहीं देखा। तब एक अधिकारी ने उनसे मेरा परिचय कराया। वे यह जानकर बहुत प्रसन्न हुईं कि मैं कम्प्यूटर विभाग का वरिष्ठ प्रबंधक हूँ। वे कम्प्यूटर में रुचि रखती थीं और उस पर कार्य करना सीखना चाहती थीं।

उस समय तक विंडोज आधारित पर्सनल कम्प्यूटर आम हो गये थे और केवल डाॅस आधारित कम्प्यूटर नाम मात्र के रह गये थे। नेहा जी ऐसे कम्प्यूटरों पर पेण्ट प्रोग्राम पर कार्य कर लेती थीं। उन्होंने उसमें एक रंग-बिरंगी गुड़िया का चित्र बनाया था। वह गुड़िया मुझे बहुत अच्छी लगी। मेरी नयी पुस्तक में क्योंकि पेण्ट प्रोग्राम पर एक अध्याय था, इसलिए मैंने उस गुड़िया को उदाहरण के रूप में अपनी पुस्तक में शामिल करने की इच्छा व्यक्त की। वे खुशी से तैयार हो गयीं। इसलिए मैंने उसे भी शामिल कर लिया और चित्र के साथ इस बात का भी उल्लेख किया कि यह चित्र इलाहाबाद बैंक की श्रीमती नेहा नाबर द्वारा पेण्ट प्रोग्राम में बनाया गया है। जब वह पुस्तक छपकर आयी, तो मेरे कम्प्यूटर केन्द्र की चारों महिला अधिकारियों को यह देखकर बहुत जलन हुई कि उनमें से किसी का भी नाम उस पुस्तक में नहीं था, जबकि मैंने नेहा जी का नाम छाप दिया था।

नैनीताल भ्रमण

मेरी घूमने-फिरने में बहुत रुचि है और सौभाग्य से हमारे दोनों बच्चे भी ऐसे ही हैं, लेकिन श्रीमती जी बड़ी मुश्किल से ही कहीं जाने को तैयार होती हैं। नैनीताल घूमने की मेरी बहुत इच्छा थी। सन् 1999 की जून में हमने वहाँ जाने का प्रोग्राम बना लिया। लखनऊ से सीधे ट्रेन काठगोदाम या लालकुआँ जाती है। हमने उसी में आरक्षण करा लिया। पहले कानपुर से एक ट्रेन में शाम को लखनऊ पहुँचे, वहाँ से नैनीताल एक्सप्रेस या ऐसी ही किसी छोटी लाइन की गाड़ी में बैठकर अगले दिन प्रातः लालकुआँ पर उतरे। जब हम वहाँ पहुँचे थे, तब हल्की बूँदें पड़ रही थीं। हमने एक अन्य यात्री के साथ टैक्सी साझा की और नैनीताल पहुँच गये। वहाँ हमारे बैंक का होलीडे होम है। हमारा प्रोग्राम अचानक बना था, इसलिए हम होलीडे होम बुक नहीं करा पाये थे। हमने सोचा था कि अगर होलीडे होम खाली न मिला तो किसी होटल में ठहर जायेंगे। सौभाग्य से होलीडे होम का एक सुईट दो दिन के लिए खाली था। वहाँ उस समय केवल एक चपरासी था। हमने उससे कहकर ताला खुलवा लिया और उसमें ठहर गये।

नैनीताल एक छोटा सा पहाड़ी नगर है। उसके दो प्रमुख मोहल्ले हैं- मल्ली ताल और तल्ली ताल। इन दोनों के बीच में है नैनी नामक प्रसिद्ध झील। उस झील के एक ओर किनारे-किनारे पर है माल रोड और दूसरी ओर हैं ऊँचे-ऊँचे पहाड़। बस इतना ही है नैनीताल। हमें नैनीताल बहुत पसन्द आया। पहले दिन बारिश बन्द हो जाने पर हम बाजार में घूमे और आस-पास के स्थान देखे। खास तौर से हम माल रोड की तरफ स्थित स्नो व्यू पाॅइंट देखने गये। वह लगभग 1 किमी ऊपर चढ़ाई पर स्थित है। श्रीमती जी इतना चढ़ नहीं सकती थीं, इसलिए केवल मैं दोनों बच्चों के साथ गया। वहाँ एक दूरबीन भी लगी है। अगर आसमान साफ हो, तो वहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ जैसे नंदा देवी की चोटी दिखाई पड़ती हैं। परन्तु बादलों के कारण बर्फ तो हमें नहीं दिखाई दी, पर चारों ओर का दृश्य खूब देखा।

दूसरे दिन हमने घोड़े किराये पर किये और दूसरी ओर के स्थान देखने गये। उनमें से कुछ के नाम मुझे अभी भी याद हैं- डोरोथी सीट, लैंड्स एण्ड, टिफिन टाॅप, बारा पत्थर। इनमें डोरोथी सीट सबसे ऊपर है। वहाँ से पूरा नैनीताल साफ दिखाई देता है। ऊँचाई इतनी है कि नीचे देखने पर डर लगता है। लैंड्स एण्ड भी ऐसा ही एक बहुत ऊँचा स्थान है। वह लगभग सीधा पहाड़ है, जिसके नीचे कोई कस्बा (शायद राम नगर) बसा हुआ है। मैं सोच रहा था कि अगर इस पहाड़ से कोई पत्थर लुढ़क गया, तो राम नगर में बहुत तबाही हो जायेगी, परन्तु सौभाग्य से ऐसा नहीं होता।

नैनीताल में रोज सुबह-सुबह जब श्रीमती जी और दोनों बच्चे सोते रहते थे, तो मैं अकेला ही नैनी झील का पूरा चक्कर लगा आता था। उसके चारों ओर ऐसा रास्ता बना हुआ है। एक बार मैं रास्ता भटक गया और जरा ऊँचाई पर चढ़ गया, तो काफी दूर जाकर मुश्किल से नीचे उतरा। एक दिन सुबह मैं अकेला ही चिड़ियाघर तक पहुँच गया, जिसका रास्ता माल रोड से है। वहाँ रास्ते में बन्दर बहुत थे, परन्तु मैं हिम्मत करके चलता गया। चिड़ियाघर का गेट तब तक खुला नहीं था। इसलिए मैं चिड़ियाघर देखे बिना वापस आ गया।

दूसरे दिन वहाँ हमारे बैंक के एक बाबू (अब वे आॅफीसर हो गये हैं) श्री अम्बर मनराय मेरठ से आये और बगल वाले सुईट में ठहरे। उनकी पहले से बुकिंग थी। हमारा सुईट केवल दो दिन के लिए खाली था और तीसरे दिन कोई परिवार उसमें आने वाला था। इसलिए हम एक दिन के लिए अम्बर जी वाले सुईट में ही ठहर गये। तीसरे दिन हम उनके साथ ही नैनीताल के आस-पास के स्थान टैक्सी से घूमने गये। वहाँ कई अच्छे स्थान हैं, जिनमें से कुछ के नाम मुझे याद हैं- नौकुचिया ताल, भीम ताल, भुआली, सात-ताल। कुल मिलाकर नैनीताल हमें बहुत अच्छा लगा। कम से कम शिमला से तो अच्छा ही था। शिमला में देखने लायक कुछ नहीं है। हमारा मन रानीखेत और अल्मोड़ा जाने का था, परन्तु उसके लिए समय नहीं था, क्योंकि लौटने का आरक्षण अगले ही दिन था।

अगले दिन हमें वापस आना था। नैनीताल के पास हलद्वानी में हमारी सगी बुआ के दो लड़के रहते हैं, जिनका दवाइयों का थोक का काम है। हम उनसे मिलना चाहते थे। टेलीफोन करने पर उनसे सम्पर्क हो गया और हम एक बस से हलद्वानी पहुँच गये। वहीं अम्बर जी से हमने विदा ली। बस अड्डे पर ही मेरे फुफेरे भाई श्री राजकुमार (मेमो) मुझे लेने आ गये। वहाँ से हम उनके हिमालिया फार्म स्थित घर पर पहुँचे। वे यह जानकर बहुत नाराज हुए कि हम सीधे नैनीताल गये थे। उनका कहना था कि पहले हलद्वानी आना चाहिए था। यहाँ से सब जगह घूमने का अच्छा प्रबंध हो जाता।

राजकुमार और उनके बड़े भाई श्री हेम चंद के परिवारों के साथ हम शाम को एक बाँध देखने गये, जो पास में ही काठगोदाम नामक स्थान पर एक पहाड़ी नदी पर बना हुआ है। वह काफी सुन्दर और शान्त स्थान है। हमें अच्छा लगा। रात्रि को जल्दी ही भोजन करके हम लालकुआँ रेलवे स्टेशन गये और वहाँ से अपनी ट्रेन पकड़कर लखनऊ आ गये। वहाँ से फिर ट्रेन में कानपुर। यह यात्रा हमने अपने ही खर्च पर की थी, क्योंकि अपनी एल.टी.सी. सुविधा का लाभ हम पिछले वर्ष ही गोवा घूमने में उठा चुके थे। नैनीताल की यह यात्रा अभी तक हमारी एक मात्र यात्रा ही है। वैसे भी श्रीमती जी का कहना है कि जहाँ एक बार जा चुके हैं वहाँ दूसरी बार जाना बेकार है, किसी नयी जगह जाना चाहिए।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

4 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 12)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आज की किश्त ख़ास कर अच्छी लगी किओंकि आप के प्रोग्राम के कारण इतना बड़ा षड्यंतर पकड़ा गिया. बैंक में हेरा फेरीआं बहुत दफा सुनी हैं ,आज आप से सुन भी लीं . अभी दो दिन हुए और एक गोरी की लाइफ सेविंग ४६ हज़ार पाऊंड जो उस ने एक वकील के अकाऊंट में जमा कराने थे वोह पता नहीं कैसे कोई वकील का इमेल अड्रैस और पासवर्ड ले कर अपने अकाऊंट में ले गिया , इस की इन्वेस्टीगेशन हो रही है लेकिन पता नहीं चल रहा कि कौन सी इन्तार्नैश्नल गैंग है . आज जो इन्तार्नैत बैंकिंग है वोह आसान और कुइक्क तो है लेकिन खतरे बहुत बड गए हैं . आप की नैनीताल यात्रा बहुत अच्छी लगी .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाई साहब।
      जालसाज़ी के ख़तरे आजकल हर प्रकार के लेन देन में होते हैं। इसलिए हमें सावधान रहना आवश्यक है।

  • Man Mohan Kumar Arya

    बैंक ड्राफ्टों के भुगतान का मिलान करने के लिए बनाये गए आपके प्रोग्राम की वजह से एक बड़ी जालसाजी पकड़ में आई यह वर्णन पढ़कर आपकी सूक्ष्मदृिष्टि व योग्यता के दर्शन किये। नैनीताल की यात्रा का वर्णन रोचक एवं प्रभावशाली है। यद्यपि मैंने दो या तीन बार नैनीताल की यात्रा की है परन्तु स्थानो के नाम याद नहीं है। नैनीताल से ही ६० या ७० किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामगढ़तल्ला में आर्य समाज के विद्वान सन्यासी स्वामी महात्मा नारायण स्वामी जी का आश्रम है यहाँ दो बार गया हूँ। यहाँ रहकर उन्होंने शिक्षा एवं समाज सुधर के अनेक कार्य किये। यहाँ ऐसी एक जाति रहती थी जो अपनी लड़कियों को वैश्या बनाया करती थी। लड़कियों के विवाह नहीं किये जाते थे। स्वामी जी के कार्य व प्रभाव के कारण यह अमानवीय प्रथा शत प्रतिशत बंद हुई। १४ जून २०१५ को वहां आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश की कार्यकारिणी की बैठक व तीन दिवसीय आयोजन थी। देर से पता चला, रेल में आरक्षण न मिलने के कारण जा नहीं सका। आज की क़िस्त के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! आभारी हूँ।
      प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त स्थानों पर जाना सदा आनंददायक होता है। मौक़ा मिलने पर अवश्य जाना चाहिए।

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