अपनी दुनिया
अपनी दुनिया को देखने में हम लगे हैं
रंग भरी दुनिया रंगीन बनाने में लगे हैं
कैसे बनेगा कुछ पता नहीं चल रहा है
कुछ लोगों के बताने पर चल रहे हैं
चलते हुए डगर पर हमेशा सोच रहे हैं
स्मरण शक्ति से ही सपने सजा रहे हैं
अपना ख्वाब कैसे पुरा होगा इस दुनिया में
यही तरकीब बनाने में दिन रात सोच रहे हैं
@रमेश कुमार सिंह
जी जरूर धन्यवाद!!
कविता साधारण है। और बेहतर लिखने की कोशिंशकीजिए।
बहुत बढिया .
सहृदय स्नेह के लिए सादर धन्यवाद!!