औरत…
हाँ मिल गई है तुम्हें आज़ादी अब मर्ज़ी से जीने की |
अपने विचार बेझिझक सबके आगे रखने की |
मगर हकीकत है क्या नहीं अनजान इससे कोई भी |
माना आज़ादी का दुरपयोग भी हुआ कहीं – कहीं |
मगर क्या दिल से सम्मान दे पाया हर कोई यूंही |
वही तानो बानो के सिलसिले वही प्रताड़ना कभी – कभी |
हाँ मिल गई है आज़ादी………
कभी चुप रहती कभी हालात से समझोता करती |
औरत ही आखिर क्यों सबके क्रोध का प्रहार सहती |
जी चाहा जिसका कुछ भी कह दिया कभी भी |
चुप रहेगी तो मुशकिल कुछ कहेगी तो जाने क्या हासिल कर लेगी |
हाँ मिल गई है………..
— कामनी गुप्ता
अच्छी कविता।
धन्यवाद सरजी
बहुत खूब .
Thanks sirji