छलका रहा होगा झलक !
छलका रहा होगा झलक, प्रति जीव के आत्मा फलक;
वह मूल से दे कर पुलक, भरता हरेक प्राणी कुहक ।
कुल-बिला कर तम- तमा कर, कोई हृदय में सिहा कर;
सिमटा कोई है समाया, उमगा कोई है सिधाया ।
सुध में कोई बेसुध कोई, रुधता कोई बोधि कोई;
चलते रहे चिन्ता दहे, चित शक्ति को ऊर्ध्वित किए ।
चहका हरेक उर वह रहा, कहता वही सबसे गया;
गन्तव्य बतलाया किया, कर्त्तव्य सुलझाया किया ।
था समझ जो कोई गया, माना उसी की जो किया;
भाया किया वह ‘मधु’ जगत, रहते हुए प्रभु संग सतत ।
रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
बहुत बढिया
एक और बढ़िया कविता।