नई पीढ़ी-पुराणी पीढ़ी
नई पीढ़ी –पुराणी पीढ़ी
पिता ने पुत्र से कहा ,
“बेटा अब तुम बड़े हो गए हो
पढ़ लिखकर
नौकरी में स्थापित हो गये हो
अब भाग दौड़ कम कर
एक गृहस्थी बसा लो
अब तुम शादी कर लो |”
आधुनिक परिवेश में पले,पढ़े,बढे
मॉडर्न होने का दावा करने वाले
पुत्र ने थोड़ी देर पिता को गौर से देखा
फिर बोला ,
”पापा मैं अब बड़ा हो गया हूँ
मैं अपना ख्याल रख सकता हूँ
अपना भला बुरा समझ सकता हूँ ,
यह जिंदगी मेरी है
मैं घूमूँ फिरूँ मौज मस्ती करूँ
या एक औरत से
अपने गले में फंदा डलवा लूँ
और उस खूंटे से सदा के लिए
बंधा रहूँ ,
आपको क्या फरक पड़ता है ?
जीना मुझे है
भुगतना भी मुझे है
आप चिंतित क्यों हैं ?”
“यह जिंदगी मेरी है “
हर युवक ,हर युवती का
आज यही बीज मंत्र हैं
सोचने समझने का नया ढंग है |
लड़कियां भी नहीं चाहती
एक खूंटे से बंधे रहना
हरित चरागाह के खोज में यद्यपि
उन्हें पड़ता है दर-दर भटकना |
“हमारी जिंदगी सबसे जुडी है
सुख-दुःख में सब ,सामान भागीदार है “
पुरानी पीढ़ी की यह सोच है |
नई पीढ़ी सोचती है
“जिंदगी मेरी है
इसमें किसी की
हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है “
माँ, बाप,बड़ों की बातों को
कुशलता से दरकिनार करने की
नई पीढ़ी को महारत हासिल है |
भाव,भावना की बातें
उनके लिए इमोशनल ब्लैक मेल है |
स्वतंत्र सकारात्मक सोच अच्छी है
नकारात्मक सोच खतरनाक है ,
पारिवारिक रिश्ते के धागे को काट
उसे अलग-थलग कर देती है,
अंत में नतीजा वही होता है
जो एक कटी पतंग का होता है |
bhawprad
धन्यवाद गुंजन जी