दो मुक्तक
धुँआ-धुँआ हो गयी जिंदगी अब तुम बिन
कतरा कतरा बह गये सपने सब तुम बिन
होते जो साथ बनते तुम मेरी ग़ज़ल गुंजन
मेरे शब्द रूठे मुझसे न जाने कब तुम बिन ।
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मुमकिन नही होता मुहब्बत को बयां करना
बेवफा जमाने में दिल थोडा सा धीरज धरना
चुभती रहेंगी शूल बन चाहत दिल में ‘गुंजन’
तीर-ए-हर्फ़ से तुम मुहब्बत में कभी न डरना ।
__________गुंजन अग्रवाल ______________
वाह वाह !
सुभान अल्ला, बहुत खूब
dhnywad sir 🙂
बहुत सुंदर मुक्तक गुन्जन जी।
aabhar sir 🙂
Very nice
hertly thnxx 🙂