कविता

नई दिल्ली

नयी दिल्ली सुखों का दरिया गहरा, दुःख का सैलाब दिल्ली पुरानी है,
इतिहास के पन्नों को पलटा, बार-बार उजड़ती देखी दिल्ली पुरानी है।

नयी दिल्ली अंग्रेजों का आशियाँ, भारतीयों की पहचान दिल्ली पुरानी है,
फाँसी का फंदा हंस-हंस कर चूमा, आज़ादी की दास्ताँ दिल्ली पुरानी है।

वही पुरानी दिल्ली उपेक्षित आज भी सुविधाओं से, सत्ता की बेईमानी है,
सत्ता के दलालों का घर नयी दिल्ली, देश भक्तों की हवेली दिल्ली पुरानी है।

जानते नहीं मेहमान नवाज़ी नयी दिल्ली में, औपचारिकता का परिवेश,
रिश्ते निभाना, आवभगत करना, सचमुच खानदानी दिल्ली पुरानी है।

नहीं बचे शहर के बीच बाग़-बगीचे औ ‘ दरिया, नवाबों के दौर के,
इंसानियत की आबो-हवा बहती जहाँ, आज भी वह दिल्ली पुरानी है।

नशा,शराब, सिगरेट, तम्बाकू व ब्यूटी पार्लर, नयी दिल्ली की शान,
पानदानी, खानदानी औ सुरमा सुलेमानी, पुरानी दिल्ली की निशानी है।

अंकल, आंटी, सर और मैडम, अंग्रेजी के अनुयायी, नयी दिल्ली में बस गये,
बहन-भैया, दादा-दादी, नाना-नानी, अम्मी-अब्बा, पहचान दिल्ली पुरानी है।
— डॉ अ कीर्तिवर्धन

2 thoughts on “नई दिल्ली

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी है !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी ,दिली बहुत कुछ छुपाए बैठी है , आज का दौर जो बहुत मॉडर्न कहते हैं लेकिन अभी तो कुछ भी नहीं , दिली ने अभी बहुत कुछ देखना है .

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