मुक्तक/दोहा

हवा निगोड़ी छेड़ती

हवा निगोड़ी छेड़ती , नरंम लता शरमाय ।
मन-ही-मन मुसकाय कें तरु से लिपटी जाय ।।
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नर्म पाव से आ गयी ,स्वर्ण किरण ले भोर ।
कलियाँ ले अंगडाइयाँ, भंवरा करता pizap.com14359004336081शोर ।।
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कलुष कलेज़ा चीर कर , जनमी उजली भोर
चहचहाने पंछी लगे , दिग दिगंत में शोर ।।
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झूम उठी हैं वादियाँ, हँसी बिखेरें खेत ।
मेघ सुधा पीकर धरा, देखो हुई सचेत ।।
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गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

4 thoughts on “हवा निगोड़ी छेड़ती

  • गुंजन अग्रवाल

    thnx vijay bhaiya

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे दोहे.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • गुंजन अग्रवाल

      aabhar sir

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