कविता

आसमाँ के सिपाही..चाँदनी ,चाँद ,तारे

रात के आगोश मे चाँदनी सिमटती गई ,
चाँद सँग यूँही ठिठोली सी करती रही |

आसमाँ को भी गुमाँ था जिस चाँद का ,
कभी देखो तो रातो को वो भी कभी घटता कभी बड़ता गया |

तारों को शायद नहीं शौक यूंही खुद पे इतराने का ,
हौंसला देते हैं वो तो राही को फिर सुबह के लौट आने का |

यूंही मिटती कभी बनती रही तस्वीर खाव्वो की मगर ,
दास्ताँ बन पाएगी कोई कैसे कहे कि इससे हैं सब बेखबर |||

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

One thought on “आसमाँ के सिपाही..चाँदनी ,चाँद ,तारे

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर कविता !

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