कविता

कविता

मैं तड़पती धरा सी
विरहन सी
तुम हरजाई बादल से
बरसते दूर देश ।
उम्मीदों के खेत
आशाओ की फसल
स्वप्नो की खेती
निराश्रित बूंदों पर ।
तुम मनमौजी
कब देखो गे ?
नीरभ्र हृदयस्थल
का सूखा ।
तुम्हारी चन्द बूंदों से
हमारे सम्पूर्ण
हृदयस्थल की हरियाली ।
हे कठोर
बरसो आओ पधारो
रोमांचित करो
मेरे अस्तित्व को ।
पूर्णित करो मेरी आस
अक्षुण्य रहे
मेरा विश्वाश
ईश्वर सा ।

धर्म पाण्डेय