लघुकथा

कटौती /लघुकथा

रेशमी ने बर्तन धोने के लिए अपनी आदत के अनुसार नल की टोटी खोली और धार की लय पर धड़ाधड़ बर्तन धोने लगी। देखते ही रमोला ने टोका-“सुनो रेशमी! पानी की कटौती शुरू हो चुकी है, ज़रा रोक रोक कर पानी खर्च करो, इस तरह काम करोगी तो जल मिलना दूभर हो जाएगा। हमें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा,भरपूर पैसा देते हैं तो हमारे घरों में कटौती नहीं होती लेकिन इसका असर तुम लोगों की बस्तियों पर अवश्य पड़ेगा”। रेशमी कई सालों से  रमोला के यहाँ काम करती आई है, हँसकर बोली “दीदी, इसीलिए तो हम आप जैसों के घर फुर्ती से काम करके रूखी-सूखी रोटी जुटा लेते हैं, हमें तो वैसे भी प्रतिदिन  कटौती का सामना करना होता है। चार बाल्टी से अधिक पानी नहीं मिलता। लेकिन हाँ, अगर यहाँ नल रोककर आराम से काम करने लगें तो घर कम हो जाएँगे और  हमारी रूखी रोटी में भी कटौती हो जाएगी। रमोला निरुत्तर हो गई।

 

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

One thought on “कटौती /लघुकथा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा !

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