कटौती /लघुकथा
रेशमी ने बर्तन धोने के लिए अपनी आदत के अनुसार नल की टोटी खोली और धार की लय पर धड़ाधड़ बर्तन धोने लगी। देखते ही रमोला ने टोका-“सुनो रेशमी! पानी की कटौती शुरू हो चुकी है, ज़रा रोक रोक कर पानी खर्च करो, इस तरह काम करोगी तो जल मिलना दूभर हो जाएगा। हमें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा,भरपूर पैसा देते हैं तो हमारे घरों में कटौती नहीं होती लेकिन इसका असर तुम लोगों की बस्तियों पर अवश्य पड़ेगा”। रेशमी कई सालों से रमोला के यहाँ काम करती आई है, हँसकर बोली “दीदी, इसीलिए तो हम आप जैसों के घर फुर्ती से काम करके रूखी-सूखी रोटी जुटा लेते हैं, हमें तो वैसे भी प्रतिदिन कटौती का सामना करना होता है। चार बाल्टी से अधिक पानी नहीं मिलता। लेकिन हाँ, अगर यहाँ नल रोककर आराम से काम करने लगें तो घर कम हो जाएँगे और हमारी रूखी रोटी में भी कटौती हो जाएगी। रमोला निरुत्तर हो गई।
-कल्पना रामानी
अच्छी लघुकथा !