ग़ज़ल
आओ कभी गिला करें तो ऐसे कि अपनापन सा लगे |
तुमसे मिलकर भी तुम्हारी कमी खलती है क्यों ,
चलो कभी ऐसे भी मिले कि दिल को अच्छा भी लगे |
क्या बात है कि होंठ कुछ आँखें कुछ कह रही हैं |
चलो अब तो दिल से मुस्काए कि बनावटी ना लगे |
तुम्हारा ही इन्तज़ार तुम्हारी ही जुस्तजु है हर बार ,
अब के ऐसे मिलो कि कभी फिर अजनबी ना लगे |
— कामनी गुप्ता
बहुत खूब .
Thanks ji
वाह वाह ! सुन्दर !!
Thanks sirji