एक आम बात
हमको दशहरी आम पसंद है , और पत्नी को चौसा. पत्नी का कथन है थोडा खट्टा मीठा नहीं रहे तो मजा नही आये । हम दोनों के इस आम मतभेद में बेटी की चांदी है। हालात ये है की बेटी का पसंदीदा फल आम हो गया है । जहाँ 1 किलो आम लाकर काम चल जाता था, वहीं अब 2 किलो पति पत्नी दोनों की पसंद का लाना पड़ता है ।
शाम को घर आने से पहले माँ का फोन जरूर आयेगा “आम लेकर ही घर आना “. फोन काटते हुए ये भी सुना ही देती है कैसा बाप है एक बेटी को आम के लिए तरसा देता है । बेटी को रट्टू तोता बना कर अम्मा जी ने कंठस्थ करा दिया है बेटा तुम्हारा पसंदीदा फल कौन सा है ।
प्रश्न खत्म भी नही हुआ कि बेटी का जवाब “आम” ।
वैचारिक विभेद में आम मनुष्य की आम समस्याओ के दरकिनार परिवार की एक आम सोच होती है । जो परिवार के मुखिया को कंजूस, धोखेबाज स्वार्थी और पता नही किन किन हालातो में पहुचा देती है। जब कोई आम प्रस्ताव आम सहमति से घर वाले आप के समक्ष रहते है तो मानो उनकी नजरे कह रही हो- सब कुछ घोट के बैठो हो कंजूस । अभी तुम्हारी हेकड़ी निकालते है ।
मन बार बार सोचता है हम तो बचपन में दूसरे के आम पर ढेला मार कर खा लेते थे। कितनी आम सी थी जिंदगी ।
धर्म पाण्डेय
अच्छा हास्य !