गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रोज घूस का जहर धकाधक घूँट रहे हैं ।
गांधी तेरा देश चिकित्सक लूट रहे हैं ।।

परिणामो की बात करोगे क्या तुम हमसे ।
दौलत पाकर यहाँ परीक्षक टूट रहे हैं ।।

अखबारों में उसकी अक्सर चर्चा होगी ।
खिला पिला के रखो समीक्षक फूट रहे हैं।।

पुलिस हुई बेईमान सम्भल के चलना भाई।
बिना रुपइया खूब अधीक्षक कूट रहे हैं ।।

कौन मिलावट रोक सकेगा मोदी बाबा ।
जेब सूंघ कर यहां निरीक्षक ढूढ़ रहे हैं।।

घोटालो पर रोक बनी बकवास है कोरी।
अम्मा के संग सभी अभी तक छूट रहे हैं ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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