क्या बॉलीवुड राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है?
एक समय था जब अमिताभ बच्चन को सब ओर थक हार कर मंदिर जाते दिखाया जाता था | वहा वो मूर्ति के सामने अपनी समस्या बोलते या कोई अन्य अभिनेता सिर पटकता था और उसकी माँ या प्रेमिका/पत्नी/पिता/मित्र इत्यादि का स्वास्थ ठीक हों जाता था | फिल्मे लोगो मे विश्वास जगाती थी के जब कुछ नही हैं तब धर्म का सहारा है भगवान हैं ईश्वर अंतिम आश्रय हैं | हम आर्य हैं, योग का मार्ग मानते हैं पर हम लोगो को विकल्प देते हैं के मूर्तिपूजा से ऊपर उठो ऋषियों का मार्ग अपनाओ| आज पी.के जैसी फिल्मे क्या कहती हैं मंदिर ना जाओ, वहा पैसा ना चढाओ, सारे बाबा ढोंगी हैं पाकिस्तानी मुल्ले अच्छे हैं उनसे शादी करो वो धोखा नहीं देते | रंडियों और दलालो का अड्डा बना हुआ हैं बोलीवुड जो पाकिस्तान आई.एस.आई और शेखो के पैसे से चल रहा हैं | तभी बप्पा रवाल, पृथ्वीराज चौहान,महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, शिवा जी, ताना जी मलुसुरे, बंदा वैरागी, हरी सिंह इत्यादि शूरवीरों पर फिल्म नहीं बनती |
इसके विपरीत आताताईयों एवं आक्रमणकारियों पर फिल्म बनाई जाती हैं | शाहजाहां, ताजमहल, मुगलेआजम, जोधा-अकबर जैसी फिल्मे बनाई जाती हैं | फिजा, मिशन कश्मीर, मैं हू ना, शौर्य, हैदर जैसी फिल्मे बनती है जो हमारी ही सेना पर कालिख पोतने का प्रयास करती हैं | इसके साथ-साथ नंगापन खुल कर परोसते हैं शादी से पहले सम्बन्ध बनाओ बाद सम्बन्ध बनाओ बुढापे मे जवान लड़की से सम्भोग करो प्यार कि उम्र नही होती इत्यादि-इत्यादि | सन्नी लियॉन जैसी रण्डी को हीरोइन बनाकर क्या सन्देश देना चाहते है? संवाद मे उर्दु और फारसी के शब्द इतने मिला दिए जाते है लोग उसी को हिंदी समझ के हिंदी को मुसलमानों कि भाषा समझने लगे हैं | गानों मे मौला, अल्लाह, अली सूफी संगीत जैसे शब्दों का छलावा दे कर छोटे-छोटे बच्चों से बडो तक अरब कि भाषा और सभ्यता कि छाप छोड़ देते हैं | बोलीवुड वास्तव मे राष्ट्रीय एकता अंखडता और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है |
साभार- आर्य मुदित
लेख की बातें सत्य हैं.
एक कटु सत्य को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद। शायद हि कोई आपकी पीड़ा को सही रूप में समझ सके। आप वैदिक धर्म व संस्कृति के सच्चे प्रहरी है।