चुनाव के फायदे
आते ही चुनाव के नेता , छोड़ के आते सारे काम
हाथ का पंजा , साइकिल हाथी ,दक्षिण पंथी या हो वाम
हर इंसा में उनको दीखे , अल्लाह जीसस या फिर राम
वोटर का घर उनको लगने , लगता जैसे चारो धाम
पार लगाने अपनी नॉव , चलते तरह तरह के दाँव
हाथ भी जोड़े ,माथा चूमे , और पकड़ने लगते पाँव
गली गली में शहर की घूमे ,कूंचे कूंचे इक इक गाँव
आँखों में आँसू भर कर के , सहलाने लगते है घाव
हर दल का नेता दस्तक देता , है दर पे घडी घडी
भोली भाली जनता उनको , सुनती रहती खड़ी खड़ी
खूब चुनावी वादो की , हर कोई लगा देता है झड़ी
लोक लुभावन नारो संग ,बाते होती है बड़ी बड़ी
हरे हरे दिखला के नोट ,लगे छिपाने अपनी खोट
वोटर को भगवान् बताकर पैरो में जाते है लोट
जिसने गद्दी पे रहते में ,दे रक्खी हो सबको चोट
जनता भी भरमित हो कर के , दे देती है उनको वोट
कुछ नेता काबू में अपने ,रखने सकते नहीं जबान
कहते लिखते समय न रखते ,वो मर्यादाओ का ध्यान
आरोपो-प्रत्यारोपो के सुनने मिलते अजब बयान
सुन पढ़ शर्म से पानी पानी होने लगता हिंदुस्तान
……………..मनोज डागा “मोजू”
बहुत खूब !
कुछ नेता काबू में अपने ,रखने सकते नहीं जबान
कहते लिखते समय न रखते ,वो मर्यादाओ का ध्यान
आरोपो-प्रत्यारोपो के सुनने मिलते अजब बयान
सुन पढ़ शर्म से पानी पानी होने लगता हिंदुस्तान—-आदरणीय डागा जी बहुत ही सुंदर और सामयिक मुक्तक लिखा है आपने ..हार्दिक बधाई