नन्हा पादप कह रहा { दोहे }
अलियों – कलियों में हुई , कुछ ऐसी तकरार ।
बूँद – बूँद में घुल रही ,मधुरिम प्रेम फुहार ।।
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प्रीत-पपीहा गा रहा , मीठे-मीठे राग ।
सावन के झूले पड़े ,सुलगी विरही आग ।।
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नन्हा पादप कह रहा , सुन रे पेड़ चिनार ।
बरस जाय मेघा अगर , दे दो इक दीनार ।।
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कलुष कलेज़ा चीर कर , जन्मी उजली भोर
चहचहाने पंछी लगे , दिग दिगंत में शोर ।।
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झूम उठी हैं वादियाँ, हँसी बिखेरें खेत ।
मेघ सुधा पीकर धरा, देखो हुई सचेत ।।
…गुन्जन अग्रवाल
बढ़िया दोहे !
गुंजन जी , दोहे बहुत अछे लगे.
क्या बात है सम्माननिया गुंजन जी, आप के दोहों ने बिहारी जी की याद दिला दिये, उत्कृष्ट अदभुत और सम्यक रचना के लिए हार्दिक बधाई, उम्मीद है कि आप की लेखनी अपनी प्रखरता बरसती रहेगी और दिग दिगंत में भोर और शोर करती रहेगी, सादर धन्यवाद…..