ग़ज़ल
रोज घूस का जहर धकाधक घूँट रहे हैं ।
गांधी तेरा देश चिकित्सक लूट रहे हैं ।।
परिणामो की बात करोगे क्या तुम हमसे ।
दौलत पाकर यहाँ परीक्षक टूट रहे हैं ।।
अखबारों में उसकी अक्सर चर्चा होगी ।
खिला पिला के रखो समीक्षक फूट रहे हैं।।
पुलिस हुई बेईमान सम्भल के चलना भाई।
बिना रुपइया खूब अधीक्षक कूट रहे हैं ।।
कौन मिलावट रोक सकेगा मोदी बाबा ।
जेब सूंघ कर यहां निरीक्षक ढूढ़ रहे हैं।।
घोटालो पर रोक बनी बकवास है कोरी।
अम्मा के संग सभी अभी तक छूट रहे हैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
अच्छी ग़ज़ल !