ग़ज़ल
फल गयी आपकी हर दुआ फिर किसे क्या कहें
दर्द को मिल गयी जब दवा फिर किसे क्या कहे
इश्क में चाक दामन उसी ने किया जानकर
दी गई पर हमीं को सजा फिर किसे क्या कहें
आग जलती रही तन बदन में बड़ी देर तक
ले गई आब को भी चुरा फिर किसे क्या कहें
साँस सरगम बनी…..जब बजी प्रेमधुन कान में
क्या किसी ने कहा या सुना फिर किसे क्या कहें
प्यार की हर तमन्ना हुई ……..है जवां आपसे
आ रही है अभी तक सदा फिर किसे क्या कहें
ख्वाब में रोज आकर हमें तुम सताते रहे
जागते में मिली ये अदा फिर किसे क्या कहें
प्यास थी बड़ी और उस पार थी इक नदी
बीच मझधार जा खुद फँसा फिर किसे क्या कहें
रामकिशोर उपाध्याय
बढ़िया ग़ज़ल !