चाय
एक चाय की प्याली
मुंडेर पर रखे
गुम हो गयी हूँ
सोचो में
था न एक दिन
जब मुझे चाय पसंद नही थी
और तुम थे
पक्के पियक्कड़
न आँख खुलती थी
बिना एक घूँट अन्दर जाए
न शाम होती थी
तब मुझे लगता था
कैसे बन्दा हैं
इतनी चाय !!
और आज !!
तुम चाय के बिना
मुंह अंधेरे उठ जाते हो
और मैं इंतज़ार करती हूँ
तुम्हारे हाथ की बनी
एक मग चाय का
घूँट घूँट उस चाय को सिप करते
हम दोनों कितनी बाते करते हैं
यह निगोड़ी चाय हमेशा रहती हैं दरम्यान हमारे
तब तुम्हे मेरे साथ रहने का बहाना थी चाय
आज मेरे लिय चाय बहाना हैं तुम्हारा साथ पाने का
— नीलिमा शर्मा (निविया)
चाय को हमारे गाँव में ‘चाह’ कहा जाता है.
बहुत खूब चाय की चाह और चाह की चाय, बहुत खूब नीलिमा शर्मा जी