कविता

चाय

एक चाय की प्याली
मुंडेर पर रखे
गुम हो गयी हूँ
सोचो में
था न एक दिन
जब मुझे चाय पसंद नही थी
और तुम थे
पक्के पियक्कड़
न आँख खुलती थी
बिना एक घूँट अन्दर जाए
न शाम होती थी
तब मुझे लगता था
कैसे बन्दा हैं
इतनी चाय !!
और आज !!
तुम चाय के बिना
मुंह अंधेरे उठ जाते हो
और मैं इंतज़ार करती हूँ
तुम्हारे हाथ की बनी
एक मग चाय का
घूँट घूँट उस चाय को सिप करते
हम दोनों कितनी बाते करते हैं
यह निगोड़ी चाय हमेशा रहती हैं दरम्यान हमारे

तब तुम्हे मेरे साथ रहने का बहाना थी चाय

आज मेरे लिय चाय बहाना हैं तुम्हारा साथ पाने का

नीलिमा शर्मा (निविया)

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन

2 thoughts on “चाय

  • विजय कुमार सिंघल

    चाय को हमारे गाँव में ‘चाह’ कहा जाता है.

  • महातम मिश्र

    बहुत खूब चाय की चाह और चाह की चाय, बहुत खूब नीलिमा शर्मा जी

Comments are closed.