आईना बोलता है
व्यापम शरणं गच्छामि
यह तो मालूम नहीं कि व्यापम की व्यापकता पर हल्ला हो रहा है या उसकी मारक क्षमता पर, पर इतना तो साफ है कि कई दिनों से शांत पड़े विपक्ष के खेमे को कुछ तर्क संगत मुद्दा मिल गया है। नेताओं में मिडिया पर अपना बयान देने की जैसे होड़ लग गयी है। विपक्ष की अगर माने तो, राज्य के सरकारी चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक, सब शक के दायरे में हैं। कोई सीधे तौर से लिप्त है तो कोई फायदा देने के लिये; कोई फायदा उठाने के लिये तो कोई इस राज़ को छिपाने के लिये; कोई तरीके ईजाद करने के लिये तो कोई साक्ष्य मिटाने के लिये; कोई ऊपर तक पैसा पहुँचाने के लिये तो कोई बिना कुछ किये धरे पैसा पचाने के लिये; यहाँ तक कि, कोई जाँच में आने वाले रोडों का पता लगाने के लिये तो कोई उन्हें हटाने के लिये संलिप्त है। प्रधानमंत्री ! सारे प्रकरण पर मनमोहनसिंह जी की तरह चुप्पी साध लेने के लिये।
सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता इधर एक शक का खंडन करते हैं तो उधर उन्हीं की पार्टी के विजयवर्गीय जैसे नेता उल्टे-सीधे बयान दे डालते हैं। जब मीडिया चिल्लाता है तो उसी पर दोष मढ़ देते हैं यह कहते हुए कि उनका बयान तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। आप यह भी तो नहीं कह सकते कि जिनकी मानसिकता में पेंच हो उनके बयान क्यों कर न पेंचदार होंगे ।
खैर, साहब, इस समय तो देश पर मध्यप्रदेश के व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) का भूत व्याप्त है सो सब की मति भ्रमित है, वर्ना ऐसे न जाने कितने व्यापम तकरीबन हर प्रदेश में व्याप्त हैं और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं हो रही है। उत्तर प्रदेश में कैसे मुजरिम से लेकर पुलिस के आला अफसर तक यादव ही यादव दिखाई पड़ रहे हैं, किसी ने पूछा ? बीहार में अचानक पिछड़ा वर्ग इतना बुद्धिमान हो जाता है कि एक ही इलाके से तीन तीन सौ लोग परीक्षा उत्तीर्ण करने लगते हैं, किसी के कान पर जूँ रेंगी ? कहाँ तक गिनवाइयेगा, ये भ्रष्टाचार तो सारे देश में ही व्याप्त है।
और इन सब को रोक पाना अत्यंत टेढ़ी खीर है, क्योंकि सत्ता पक्ष का ये मौलिक अधिकार है । बस, इतना खयाल रखना होगा कि बाबा आसाराम के मृतक गवाह व्यापम के मरने वाले गवाहों मे न जोड़ दिये जाएँ ।
कौन कहाँ तक संबद्ध है, इस पर अभी टिप्पणी करना शीघ्रता होगी। हम सब का काम तो तमाशबीन का है।
आज आईना बहुत दिनों बाद बोला है और खूब बोला है। व्यापम मामला प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार का मामला है। इसके सरगना राज्यपाल राम नरेश यादव और उनके पुत्र लगते हैं जो अब आत्महत्या कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज को इसमें लपेटना कांग्रेस का मानसिक दिवालियापन है। कांग्रेस ने कभी भी राज्यपाल का इस्तीफ़ा नहीं माँगा जबकि वे इसमें नाक तक डूबे हुए हैं।
हा हा हा हा हा वाह मान्यवर वाह