लावारिस लाश
पूर्वी दिल्ली का यह सबसे बड़ा सरकारी हॉस्पिटल था , भीड़ इतनी की लोग ओ.पी. डी में पर्चा बनवाने के लिए सुबह चार बजे से ही मैन गेट पर लाइन लगा देते । चुकी पूर्वी दिल्ली का एकमात्र बड़ा सरकारी हस्पताल होने के कारण और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण दिल्ली और उत्तर प्रदेश के मरीजो की भीड़ लगी रहती ।
रोज की तरह आज भी ओपीडी में लोग सुबह चार बजे से ही पर्चा बनवाने की लाइन लगी हुई थी , भीड़ इतनी की मानो पूरा शहर ही बीमार हो गया हो, 62 साल का सुन्दर लाल भी लाइन में लगा हुआ था । मैला सफ़ेद कुरता और धोती पहने बगल में प्लास्टिक का थैला दबाये लाइन में कभी खड़ा होता तो कभी थक के बैठ जाता , खिड़की खुलने में अभी 2 घंटे थे ।लाइन में लगे लोगो में आपस में बातचीत भी शुरू हो गई थी , पूछने पर सुन्दरलाल ने बताया की वह का बाराबंकी देहात के गाँव का रहने वाला है और सीने में दर्द रहने के कारण उसका इलाज करवाने आया है । लखनऊ में इलाज करवाया था पर वंहा कोई फर्क नहीं पड़ा किसी ने बताया की दिल्ली में इसका इलाज अच्छा होता है इसलिए वह दिल्ली आ गया । सुन्दर लाल की गाँव में अपनी कोई खेती नहीं थी बस एक छोटी सी झोपडी है , वह एक खेतिहर मजदुर था एक ही लड़की थी जिसका विवाह कर दिया । सरकार जो वृद्धा पेंशन देती या लड़की के घर से जो अनाज आ जाता उसी से उसका गुजरा चलता । पत्नी का भी आँखों का ऑपरेशन हो चुका है जिस कारण उसे कम दिखाई देता है ।
सुन्दरलाल जब लखनऊ से इलाज करवा के थक गया तो एक दिन बिना अपनी पत्नी को बताये चुपचाप इलाज के सारे कागज ले और कुछ रूपये जो उसे पेंशन से मिले थे उसे थैले में ले दिल्ली की ट्रेन पकड़ ली । पत्नी को इसलिए नहीं बताया की वह भी साथ आने की जिद करती , अब दिल्ली जंहा वह खुद पहली बार आ रहा है जीवन में वंहा आधी अंधी हो चुकी पत्नी को कैसे लाता , उसका अपने ही रहने खाने का ठिकाना नहीं था दिल्ली में और फिर पैसा भी इतना नहीं था। अतः केवल उसने अपनी बेटी को बताया दिल्ली आने के लिए , बेटी भी छोटे छोटे बच्चे होने के कारण असमर्थ थी सुन्दरलाल के साथ आने में पर उसने अपने पिता को 100 रूपये जरूर दे दिए जो उसने कई दिनों से अपने पति से बचा के रखे थे ।
दो घंटे बाद ओपीडी की खिड़की खुली उसके कंही एक घंटे बाद सुन्दर लाल का नंबर आया ,पर्चा बनने के बाद सुंदरलाल सम्बंधित डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर को उसने अपनी परेशानी बताई और पुराने इलाज के कागज दिखाए । डॉक्टर ने लखनऊ वाले हॉस्पिटल के पर्चे देख के कहा की अब यह सब बेकार हैं और उसे दुबारा जांच शुरू करवानी , और एक एक्सरे करवाने के लिए लिख दिया साथ ही कुछ दवाइयाँ भी लिख दीं जो खानी थी।
सुन्दरलाल जब एक्सरे करवाने गया तो वंहा भी लंबी लाइन कई घंटो बाद उसका नंबर आया तो एक्सरे करवाया पर रिपोर्ट के लिए कहा गया की तीन दिन बाद मिलेगी । सुन्दरलाल ने विनती की वह दूर से आया है और रिपोर्ट जल्दी मिल जाए तो अच्छा होगा । पर इस पर एक्सरे टेक्नीशियन ने उसे डाँटते हुए कहा की अगर जल्दी रिपोर्ट चाहिए तो प्राइवेट करवा ले यंहा तो समय लगेगा ही।
सुन्दर लाल ने पूछा की प्राइवेट में कितना खर्चा आएगा तो टेक्नीशियन ने बताया की 150-200 रूपये । सुंदरलाल के पास कुल 350 रूपये ही बचे थे , उसने सोचा की यदि 200 रूपये एक्सरे में खर्च हो जायेंगे तो उसके पास पैसे कँहा बचेंगे और वह क्या खायेगा?।
यह सोच वह चुप हो गया और टेक्नीशियन से बोला ठीक है वह 3 दिन बाद रिपोर्ट ले लेगा ।उसके बाद वह दवाई की लाइन में लग गया , जब नंबर आया तो पता चला की एक दवाई आउट ऑफ़ स्टॉक है और उसे बाहर से लानी पड़ेगी । जब सुन्दरलाल बाहर मेडिकल की दुकान पर पहुंचा और दवाई का पर्चा दूकानदार को थमाया तो दूकानदार ने कहा की 100रूपये की दवाई है ।मजबूरन उसने दवाई ले ली परन्तु उसके पास अब रहने की समस्या थी , तीन दिन तक वह कंहा रहेगा यह सोच सोच के परेशां था । उसने हास्पिटल के ही एक गार्ड से अपनी समस्या बताई गार्ड ने कहा की सामने पार्क में वह रह सकता है और रात को वंही बैंच पर सो सकता है ऐसा कई लोग करते हैं।
सुंदरलाल ने दो दिन मुश्किल से काटे , दिन में या तो वह हॉस्पिटल में यूँ ही घूमता या कभी बहार निकल के सड़क पर बैठ जाता और आने जाने वाली बड़ी बड़ी गाडियो को निहारता और रात को पार्क में आके सो जाता । उसे चिंता होती की उसकी पत्नी कैसे रह रही होगी उसके बिना । तीसरे दिन सुंदरलाल को एक्सरे रिपोर्ट मिली , जब वह रिपोट लेके डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने रिपोर्ट देखी और बोला-
बाबा ,इस एक्सरे रिपोर्ट में तो कुछ भी नहीं आया ”
राम लाल ने जबाब दिया -” पर डॉक्टर साहब छाती में दर्द तो बहुत है साँस भी ठीक से नहीं ली जाती”
इस पर डॉक्टर ने कहा की उसे सिटी स्केन करवाना पड़ेगा बिना जांच के सही मर्ज का पता नहीं चलेगा और पर्चे पर लिख कर दे दिया । सुन्दर लाल जब सिटी स्केन डिपार्टमेंट में गया तो पता चला की उसका नंबर 15 दिन बाद आएगा । सुन्दर लाल बहुत गिड़गिड़ाया पर डॉक्टर के सामने और अपनी मज़बूरी बताई की जल्दी उसकी जांच कर दें पर डॉक्टर ने साफ साफ़ कह दिया की या तो वह 15 दिन का इन्तेजार करे या उसके प्राइवेट क्लीनिक पर 3500 रूपये में जांच करवा ले । सुंदर लाल जिसके पास मात्र 200 रूपये बचे थे वह 3500 रूपये कँहा से लाता । अत: मजबूर होके फिर से 15 दिन रुकने का मन बनाया ।
सुन्दरलाल फिर से पार्क में रात बिताने लगा और दिन इधर उधर । बाकी कई मरीजो के रिस्तेदार भी उस पार्कh में आते ,कभी कभी कोई तरस खा के सुंदर लाल को खाना या चाय नास्ता दे देता था पर किसी से कुछ मांगता नहीं था जिसे देना था वो अपने आप ही दे जाता था । फिर भी धीरे धीरे 5-6 दिन में उसके बचे हुए पैसे ख़त्म हो गए । इधर दवाई भी खत्म हो गई जिससे उसके सीने में और तकलीफ बढ़ने लगी । एक दो दिन और सुन्दरलाल ने दर्द में काटे पर दर्द और भूख बर्दाश्त से बाहर हो गई तो उसने अपने जीवन का सबसे कठिन फैसला लिया .. भीख मांगने का । वो सुन्दरलाल जिसने कभी किसी से कुछ नहीं माँगा वह अब भीख मांगने जा रहा था अपने स्वाभिमान की तिलांजलि देके ।
अब सुंदर लाल दिन में भीख मांगता और रात को पार्क में सो जाता , पर अब दवाइयो का असर भी ख़त्म होता जा रहा था ।एक बार दुबारा डॉक्टर को दिखाया पर डॉक्टर ने कहा की सिटी स्कैन की रिपोर्ट आने के बाद ही उसका इलाज शुरू होगा और नई दवाइयाँ लिख दीं । दरसल डॉक्टर भी उसे गरीब और भिखारी जान उसे सीरियस नहीं ले रहा था । इधर एक और मुसीबत सुंदरलाल पर आ गई पार्क में सोने के कारण उसे मच्छरों ने काट लिया था जिस से उसे मलेरिया भी हो गया था और बुखार से भी परेशान रहने लगा , पर फिर भी सुन्दरलाल किसी तरह भीख मांगता और गुजरा करता ।
कुछ दिन और गुजर गए ऐसे ही एक दिन सुन्दर लाल की तबियत शाम से ही ख़राब थी , तेज बुखार के साथ सीने में भी दर्द था । सुंदरलाल ने हॉस्पिटल में जा के देखा तो ओपीडी बंद थी , गार्ड की सहायता से किसी तरह आपातकालीन विभाग में भर्ती हो गया पर जैसे ही डॉक्टर उसे देखने आया तो सुंदरलाल को देखते ही उसका माथा गर्म हो गया और बिना उसकी जांच किये ही उसको अभद्र भाषा में सुनने लग गया की जब देखो परेशान करने आ जाता है । जब दस बार कह दिया की सिटी स्कैन की रिपोर्ट आने के बाद इलाज शुरू होगा तब भी समझ नहीं आता इस बुड्ढे को । इतना कह के डॉक्टर ने एक पेनकिलर का इंजेक्शन लगा के उसको बहार निकाल दिया ।
इंजेक्सन से सुन्दरलाल को तत्काल थोडा आराम मिल गया पर बुखार जस का तस बना रहा , वह बुझे मन से पार्क में आ के बैठ अपने थैले में से कल की बची हुई बासी रोटी निकाल के सूखी ही चबाने लगा । तब तक अँधेरा गहरा गया था और मौसम बारिश का होने लगा था । सुंदरलाल ने किसी तरह सूखी रोटी ख़त्म की और चद्दर ओढ़ के लेट गया , लगभग आधी रात को उसके सीने में भयंकर दर्द उठा उसने आँखे खोली तो देखा की पानी बरस रहीं हैं । वह उठ के किसी सुरक्षित जगह पर जाना चाहता था पर तेज दर्द से उससे उठा नहीं गया और उसकी आँखे बंद होती चली गई ,वह बेहोश हो गया था, बारिश की बुँदे और बड़ी होती गईं।
सुबह जब बारिश रुकी तो माली जो की उस पार्क की देखभाल करता था उसने चद्दर ओढ़े सुंदरलाल को देखा तो उसे जगाने के लिए चद्दर हटाई , पर सुंदरलाल हमेशा के लिए सो गया था । जिस हास्पिटल में वह इलाज होके ठीक होने के लिए अपने गाँव से इतनी दूर आया था वंही अब उसका पोस्टमार्टम होके उसको बोरे में सिला जा रहा था और बोरे पर लिखा था ‘ लावारिस लाश’ ।
– केशव
गरीबी इंसान को किस तरह अभिशप्त जीवन जीने और लावारिस मरने के लिए छोड़ देती है, यह तथ्य बखूबी कहानी में उभर कर आया है। कहानी अच्छी लगी। लेखक केशव जी को हार्दिक बधाई
बहुत अच्छी और मार्मिक कहानी ! यही डाक्टरों और सरकारी अस्पतालों का सत्य है.
बहुत दुखद कहानी ,भारत में गरीब के लिए कोई जगह नहीं ,वोह तो बस नरक के कीड़े हैं ,(अमीरों की ज़ुबान में ).