फुर्सत
मैं कुछ पल फुर्सत के चाहती हूँ
हर बन्धन से रिहाई चाहती हूँ,
कुछ फुर्सत कलैंडर से
न डराए वो
आने वाले दिन की परेशानियों से,
कुछ फुर्सत घड़ी की
टिक टिक से
जो भागती है तेज़ मुझसे तेज़,
कुछ फुर्सत उस अपार अनंत ट्रैफिक से
जो चलता तो मेरे साथ है
पर हर कोई तन्हा है,
कुछ फुर्सत उन शिकवे शिकायतों से
जो मेरे घर पहुँचते ही
मेरे अपने करते हैं
कुछ फुर्सत उन उकताहट भरी ख़बरों से
जो इतनी हो गयी हैं कि
ज़ेहन को भी नहीं झकझकोरती,
अब कुछ पल दुनिया से विदाई चाहती हूँ,
मैं कुछ पल अपने लिए तनहाई चाहती हूँ।।।
_______प्रीति दक्ष
मोहक कविता !
dhanywaad vijay ji aabhaar..