कविता

रक्षा का सूत्र

एक रक्षा का सूत्र बांधना है

अपने देश की एकता को भी

ताकि टूटने न पाए पवित्र बंधन ,

जो  जुड़ा है सांसो से कई शहीदों के

करनी है रक्षा जी जान से अपने देश की

करनी है चौकसी दिन रात इस की

ताकि हर न ले जाये

कोई भारत माता हम से

बांधना है सूत्र ऐसा

जो गूंथा हो प्यार

और स्नेह से हमारे ,

जोड़ना है दिलों को अपने

करने हैं मजबूत हाथ अपने

आओ इस पावन बेला पर बांधे मिलकर

सूत्र एकता का अपने देश को

करें प्रण रखेंगे लाज सदा ही अपने देश की

बांधे सूत्र ऐसा जिसे खोल न पाए कोई

एक रक्षा का सूत्र बांधना है

अपने देश की एकता को भी

ताकि टूटने न पाए ये पवित्र बंधन कभी   ||

— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

One thought on “रक्षा का सूत्र

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा सामयिक कविता !

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