बूढ़ा बैल कहीं नहीं बिकता
ये सोचकर
बैल ख़रीदे
किसान ने
अपनी पहली
फसल बेचकर
घर को एक बारिश
और खाने दे
बाद में ठीक करायेंगे
बैलो के खूरों में
नाल लगवाने का
दर्द ,मगर खुद के सीने में
दबा जाते है
हर साल फसलों का
जोड़ बाकी करके
फसलो पर दंभ भरते
वे फसले जिनका
खाद ,दवाई बीज
पहले उधारी का
निवाला बन चुकी
पिछले साल पानी ने ओलावृष्टि में
फसले कमजोर कर
फसलों के लाभ के आँकड़े
बदल डाले ऋणों में
और इस साल पानी नहीं
बरसने के कारण फसले मुरझाने लगी
ये बातें भला बैल क्या जाने ?
कर्ज में डूबा किसान
बैलो को ही सुख -दुःख का
सहारा समझता
उनसे ही बातें करता
अपने दुःख दर्दो को
बीमार होने पर
छकड़ा गाड़ी में
बैलो जोतकर
इलाज करवाने चला जाता है
शहर
बैलगाड़ी की लचरता
उसके पहिये के
टूट जाने से होती
बेबस
इसमें भला बैल का क्या दोष ?
बैल ही को
किसान मारता ,समझाता
इसी ने मेरी गाड़ी तोड़ी
घर जाने पर गुस्सा
छोड़ आता रास्ते पर
दुलारता है फिर से
सोचता है ये सब ऊपर वाले की मर्जी है
बैल बूढ़ा होने तक
अपने मालिक की सेवा
करता है
क्योकि अंत में उसे
किसान के घर ही
मरना है
क्योकि बूढ़ा बैल कही बिकता नहीं
इसमें भला किसान का क्या दोष ?
संजय वर्मा “दृष्टि “