लघुकथा : मैं चोर नहीं
माँ की असमय मौत ने गुलाल से उसका सुरक्षित गढ़ छीन लिया। अब वह पाँच वर्ष का नन्हा सहमा –सहमा रहने लगा ।
लोगों ने सलाह दी -दूसरी शादी कर लो बच्चा माँ पाकर खिल उठेगा ।
दूसरी शादी हो गई ।
गुलाल उसे माँ न कह सका, कहने की कोशिश भी करता तो जीभ तालुए में चिपक जाती
पापा कबीर ने कुछ समय के लिए हॉस्टल पढ़ने भेज दिया शायद समय उसके घाव को भर दे और गुलाल नई माँ के रिश्ते को इच्छा से ओढ़ ले ।
दो वर्ष तो वह हॉस्टल में रहा पर तीसरे वर्ष उसे घर बुला लिया
गया बिना बच्चे के कबीर का मन नहीं लग रहा था ।
गुलाल के आते ही उसके पापा बोले —बेटा अब तुम अपने घर आ गये हो सुनते ही मासूम का चेहरा चमक उठा ।
-जो चाहिए —ले लेना या अपनी माँ से कहदेना । माँ शब्द ने उसके चेहरे की चमक को डस लिया ।
एक दिन कबीर शाम की बजाय दोपहर को ही ऑफिस से घर आ गये। किसी के रोने की आवाज सुनकर उनका दिल दहल उठा। अन्दर जाकर देखा —-गुलाल कुर्सी पर बैठा है लेकिन उसके दोनों हाथ —-दोनों पैर रस्सी से बंधे हैं।
पापा को देखते ही गुलाल बदहवास सा चिल्लाने लगा —
पापा मैं चोर नहीं हूं मेरी रस्सी खोल दो —मैं –मैं चोर नहीं हूं।
——क्यों रे —झूठ बोलता है दो दिन से बराबर चोरी कर रहा है तेरी सजा यही है न हिलेगा न बिना पूछे कुछ उठाएगा ।
पत्नी का ऐसा रौद्र रूप कबीर पहली बार देख रहे थे। अपने को काबू में रखते हुए पूछा —
-बेटा तुम्हें रस्सी से क्यों बाँधा ?
-पापा –पापा मैं चोर नहीं बस लड्डुओं को देखकर खाने को मेरा जी चाहा सो खा लिए । आप ने ही तो कहा था यह घर मेरा है फिर लड्डू भी तो मेरे हुए। बोलो पापा —मैं ठीक कह रहा हूं मैं चोर तो नहीं ।
-आप इसको बिगाड़ कर रख देंगे ,हॉस्टल भेजना ही ठीक है — इसको
–जरूर हॉस्टल भेजूँगा लेकिन उसे नहीं तुमको — जिस स्कूल में गुलाल गया था वहाँ एक शिक्षिका की जगह भी खाली है तुम जैसे पढ़े लिखे और समझदारों को इतना अच्छा अवसर नहीं गवांना चाहिए और हाँ, –वे रहने की जगह उसी हॉस्टल में देंगे जहाँ गुलाल रहता था ।
आनंद ही आनंद !छुट्टियों में घर आ जाना या तुमसे मिलने हम वहाँ पहुँच जायेंगे ।
-आप तो अच्छा मजाक कर लेते हैं। मैं आपके बिना कैसे रहूँगी फिर आपको भी तो मेरी याद आएगी ।
–याद तो आयेगी लेकिन गुलाल के बिना रह सकता हूं तो तुम्हारे बिना भी रहना तो पड़ेगा ही ।
–अपनी बात तो कह दी मैं तो नहीं रह – – — ।
कबीर ने उसकी बात काटते हुए कहा —
जब गुलाल रह सकता है मेरे बिना तो तुम भी आदत डाल लो ।
पत्नी के चेहरे पर भय व आश्चर्य मिश्रित रेखाएं उभर आईं वात्सल्य का झरना ऐसा सुखद था कि कबीर उसमें भीग गया और पितृ -प्रेम के आगे पत्नी प्रेम फीका पड़ गया |
समाप्त
बैंगलोर
मोबाइल-9731552847
बहुत अच्छी लघु कथा ,कुछ औरतें ऐसी ही समझ सकती हैं .